था खुद के पास वो बैग जिन्हे हम ख्वाहिशे कहते है जो गुम हो गया इन दल दल भरी राहों में फिर इखट्ठा करना है फिर इन्हें सब लेके चलना हैं जो तोड़ दिए उन ख्वाहिशे को हमे फिर उन्हें जोड़ के चलना हैं हां वक्त लगेगा पर वो सुबह आएगी जिन्हे मैं धीरे धीरे ही सही पर पूरा ज़रूर करूंगी।।
हा मैं हसना चाहूं फिर से गुनगुनाना चाहूं उन अपनों की गलियों में रहना चाहूं जहां सब अपने हो कोई धोखा ना हो हां मैं महसूस करना चाहूं वह पल जो सुकून के होते हैं वह हंसी जो सच की होती है हां मैं देखना चाहूं
तमन्नाओं से बधे डोर में ये कैसा जंजाल बुन गया झूठी हसी रखते मन भर गया दिल आहत होता है इस बात पे तू सच ना पकड़ सका क्या कहूं क्या सुनाया जाय ए मेरे रब अब तू ही बता।।
ज़िन्दगी जब सजा बन गई दिल को और रुलाने लगी दिल तो रोया बहुत था मगर धड़कन को भी ये आजमाने लगी दिल तो हमेशा से रोता रहा आज उसके धड़कन भी शामिल हुई कितना सहे दिल धड़कन बेचारा कितना रोके आसुओं की ये धारा,,,,,,,,,,,,,,,,,