- अंकिता✍🏻
गुजरते हुए समझाया था खुद को,
एक बूँद इश्क़ में जलाया था खुद को।
अगर जंग हारूँ, लहू लाल बहता,
मगर आँसुओं में बहाया है खुद को।-
केश मेघ से रहें और चोटी होनी चाहिए।
थोड़ी चंचल और घर की छोटी होनी चाहिए।
हड्डियाँ ही हड्डियाँ हों ये हमें मंजूर नहीं,
चाँद जैसी हो और थोड़ी मोटी होनी चाहिए।
जब भी खुले मुख तो स्वर मधुर बना रहे,
ये नहीं कि बात सारी खोटी होनी चाहिए।
हर कला में हो निपुण ये जरूरी है नहीं,
गोल हो या हो तिकोनी, रोटी होनी चाहिए।
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कभी ईश्वर ने चाहा तो
किसी पार्क की दो अलग बेंचों पर
दो अलग इंसानों के साथ बैठकर भी
पुरानी यादों से एक दो नज़र चुराकर
पुनः मिल सकते हैं हम दोनों,
भावनाओं के सैलाब पर काबू पाते हुए।
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एक ग़ज़ल आपके लिए❤️
बह्र: 122 122 122 12
रहा 'चाँद' मैं तू रही चाँदनी,
नहीं कोई नभ में सितारा रहा।-
ख़ौफ़ज़दा है दुनिया कब युद्ध छिड़ जाये,
क्यों कब कौन किससे यूँ ही भिड़ जाये।
कहीं चुनावी वादों का बिगुल तो नहीं बजा ?-
फैल गया है
काजल नयनों का
सूरज से पहले।
राह सूनी है
कोई निकल गया
कौन आएगा ?
बादल फ़टे
या नयनों के नीर
सैलाब आया।
हिलते पत्ते
या धड़के हृदय
दोनों नाजुक।-
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ मित्र
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂
हँसमुख😬
थोड़ी पागल😇
थोड़ी शैतान🥴
चुलबुली🤪
खलबली🤯
पढ़ाकू📚
लड़ाकू😝
ईश्वर अतिशीघ्र आपको सफलताओं से नवाजे।
Wish you a very happy and Healthy B'day
🎂🎂-
ये दुनिया ही अलग होती, अगर सीधे लड़े होते,
तुम्हारी हार निश्चित थी, अगर यूँ ही अड़े होते।
पले हैं वीर गोदी में, ये नारी शक्तिरूपा है,
अगर सम्मान भूले तो, वही काली स्वरूपा है।
अनेकों वीर गाथाएँ, पली हैं गर्भ में इसके,
कहानी जीत की मैंने, सुनी संदर्भ में इसके।
कहाँ तक टिक सकोगे तुम, बिगुल जब वार का होगा,
यूँ ही आँखें दिखाना जब, समय संहार का होगा।
नहीं डरती, नहीं झुकती, ये अबला है नहीं नारी,
गढ़ा संसार हो जिसने, सुनो! ये है वही नारी।
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