चलना भी ज़रूरी है, गिरना भी ज़रूरी है,
हर ठोकर में छुपा एक नया अध्याय है।
जो रुक गया, वो थम गया,
जो सीखता गया, वो खुद को पा गया।
जब तक सीखना जारी है,
तब तक ज़िंदगी तुम्हारी है।-
Author of prerana (book)
Published poet & writer ✍🏻
Fitness freak
दिल से लिखी हु... read more
चले थे साथ सब, पर राह में कोई न था,
हर मोड़ पर बस अपना ही साया था।
जिन्हें अपना समझा, वही पराया कर गए,
सच कहूँ तो आइना भी अजनबी सा लगने लगा।
जब ज़रूरत पड़ी, किनारा कर गई दुनिया।-
झाँसी वाली रानी भारतवर्ष का अभिमान थी,
हर नारी के भीतर छिपी चण्डी की पहचान थी।
बलिदान दिवस पर शोक नहीं..नेत्रों में गर्व की चमक हो,
ये दिन है जयकारों का,शिराओं में वीरता का रक्त रक्त हो।
ये दिन है जयकारों का,शिराओं में वीरता का रक्त रक्त हो।।-
“धरती की पुकार”🖋️
हरी भरी धरती को फिर से मुस्काने दो,
जो शुद्ध आती है हवा वृक्षों से,आने दो।
साँसें जो चलती हैं,इन वनों के दम से,
मत काटो वो शाख़ें,जो जुड़ी हैं हमसे।
नदियाँ जो बहती हैं,माँ जैसी पावन,
हर बूँद में बसी है,जीवन की सावन।
उजालों की चाहत में,धुएँ न बिछाओ,
आकाश नीला रहे,और मत जलाओ।
चलो एक प्रण लें,पेड़ लगाएँ हर जगह,
साँसें जो चलती हैं हमारी यहीं है वजह।
थक चुकी है धरती अब,बोझ उठाते-उठाते,
थकें न अब हाथ कोई.. वृक्ष लगाते -लगाते।-
क्यों लें इतना भार,
मन से तू अब न हार।
सब कुछ समय करेगा,
तेरे सारे ज़ख्म भरेगा।
ख़ुश रहना एक आदत है,
ज़िन्दगी तो ख़ुदा की इबादत है।
ज़िन्दगी तो ख़ुदा की इबादत है।।-
पल पल आगे बढ़ना होगा,
प्रकाशमय होगा जीवन तेरा भी,
उससे पहले अनवरत संघर्ष तुझे
करना होगा।
-
अहिल्याबाई होलकर🖋️
स्त्रियों की वो पहली ढाल बनी,
संकोच की बेड़ियाँ तोड़ चली।
पढ़ने का हक़, जीने का अधिकार,
उसने दिए औरत को नए उपहार।
शून्यमय🖋️
अहिल्याबाई होळकर
(31 मई 1725 - 13 अगस्त 1795)
अहिल्याबाई होलकर जी की
जयंती की अशेष शुभकामनाएँ💐💐💐💐-
पिता उस फल और छाँव देने
वाले विशाल वृक्ष की भाँति है,
जिसे स्वयं केवल प्यार और परवाह
की आवश्यकता होती है
उसके पश्चात वह अपना सर्वस्व
अपनी संतानों पर न्यौछावर कर देता है।-