बस्ता कल भी था कंधे पर
बस्ता आज भी है कंधे पर
फर्क है तो बस इतना..
पहले बस किताबें थी
आज जिम्मेदारी हैं।-
Work in progress
Cricket lover 🏏🏏
बिहारी ❤️
Delhi wasi🤭🤣
Family is my he... read more
जज़्बा हो दिल में
तो दुनियां झुकती हैं
हौसला हो बुलंद तो
वक्त भी इतिहास लिखती हैं
हां, होता होगा हीरा महंगा बाजार में
लेकिन जो जीते पसीने से सोना
उसे ही पूरी दुनिया कोहिनूर समझती हैं ।-
ये सन्नाटों का पहर फसलों की अंगड़ाइयां
कोयल की कुकू पेड़ों की परछाइयां
सरसो की पीली चुनरी बिन बाती दीया जलाएं
नदियों का पानी ठहरा पत्थरो पर घूंघट लाए
पत्तों की डालियां झाक रही बलखाके
फूलों की खुशियां देख जगनुओ का मन भागे
ये रात की लाली हवाओं संग बह रही
चंद्रमा की ये जुल्फे खूबसूरती के लफ्ज़ कह रही
ये बरखा का मौसम चादर लपटे
बिखेर रही खुशियां फिजाओं को समेटे
ये मिट्टी की खुशबू मन में मिठास घोल रही
औंस की सुनहरी बूंदे धरती का माथा चूम रही
दुनियां ने ठुकराया जिसको
तेरे बाहों ने मुझको पनाह दिया
मैं जब जब खुदसे हार गया
तेरे आंचल ने हर बार सुला दिया..
इस रात की लोरी सुन हम वादियों में खो गए
भुला बैठे थे जिस अस्तित्व को
आज खुद से रू-ब-रू हो गए....
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मन में घबराहट लिए
बेचनी को बांधे उठने को
चाहता हूं मगर दिल ना माने
चलने से लडखडा रहे कदम
सिसकियों की एक आहट हैं
अश्कों की नदियां बह रही
ये मिट्टी का रंग आज लाल है
पंछियों को कैद किया
रोक दिया उनकी उड़ान को
पिंजरों का दर्द आज पता चला जब
तरस गए हर सास को
आज कैद है हर इंसान
सुकून कि वर्षा खोज रहे
चिड़िया बनना चाहे मन
लेकिन सितम का मंजर भोग रहे
उजड़ गया सिंदूर, टूट गई चार चूड़ी
क्या करूंगी इस माथे का
जब मांग ही पड़ गईं सुनी
सड़को पर मांग रहे भीख
अर्थी को कौन दे सहारा
आज धन है आज अन्न है
फिर क्यों है बेसहारा..
ये रात चुभ रही आंखो में, सुबह की चिंता सता रही
में धुंध में बैठे सोच रहा, खुशी के बंधन खोज रहा
जल गए शमशान सारे, चिता का लगा भंडार
अग्नि भी आज बोल उठी, है ईश्वर रहम कर इस बार!
मैं तपती तपती थक गई, मुझसे और जला ना जाए
मदद की बरखा कर दे तू , अब मुझसे भी सहा ना जाए...
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बस यूं ही रास्तों की मंजिल पर सुकून का शहर
ना वक्त की बाते, ना कल का ज़हर
चलते - चलते कंजरो पर अदात है मुझे
दर्द की चुभन पर मुस्कराहटों की लहर
ठहर-ठहर यूं सोचता ना फ़िर
यह सोचती हैं दुनियां ,ये नोचती हैं सिर
तू चलता रह ना डग मगाए तेरे कदम
यहां सैकड़ों हैं कहते किन- किन से करेगा शर्म..
लोग कहना छोड़ देंगे मत पाल ये भ्रम
है इत्र तेरी बाजू में चल कर कुछ कर्म
नज़रे तेरी सामने हो मंजिल को दे तू दस्तक
कह-कह के वो थक जाए बस गिरे ना ये मस्तक
सुख जाते है आसूं मिट्टी की हर लफ्ज़ पर
तो उठ खड़ा हो गिरा रहेगा कब तक..
जिस्म के तेरे हर कतरे को मिट्टी की खूसबू याद हैं
तलप है तेरे सीने में बस जीतने की प्यास है...
बस ये प्यास बुझ ना पाए ये दर्द छुप ना पाए....
" लाख छुपाले लोग दर्द को वो दिख ही जाता हैं
जो पोछ न सका आसू वो बिखर ही जाता हैं "-