मन में घबराहट लिए
बेचनी को बांधे उठने को
चाहता हूं मगर दिल ना माने
चलने से लडखडा रहे कदम
सिसकियों की एक आहट हैं
अश्कों की नदियां बह रही
ये मिट्टी का रंग आज लाल है
पंछियों को कैद किया
रोक दिया उनकी उड़ान को
पिंजरों का दर्द आज पता चला जब
तरस गए हर सास को
आज कैद है हर इंसान
सुकून कि वर्षा खोज रहे
चिड़िया बनना चाहे मन
लेकिन सितम का मंजर भोग रहे
उजड़ गया सिंदूर, टूट गई चार चूड़ी
क्या करूंगी इस माथे का
जब मांग ही पड़ गईं सुनी
सड़को पर मांग रहे भीख
अर्थी को कौन दे सहारा
आज धन है आज अन्न है
फिर क्यों है बेसहारा..
ये रात चुभ रही आंखो में, सुबह की चिंता सता रही
में धुंध में बैठे सोच रहा, खुशी के बंधन खोज रहा
जल गए शमशान सारे, चिता का लगा भंडार
अग्नि भी आज बोल उठी, है ईश्वर रहम कर इस बार!
मैं तपती तपती थक गई, मुझसे और जला ना जाए
मदद की बरखा कर दे तू , अब मुझसे भी सहा ना जाए...
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