मंज़िल तक पहुँचने से
खुद अपने आप से आगे निकलने से
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Shubhra Singh
(Shubhra Singh)
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Joined 11 March 2019
3 NOV 2021 AT 19:14
कुछ लोग उतर जाते हैं
मन से,
जैसे उतर गयी हो,
पहाड़ से नदी
एक- एक कतरा बूँद का
चला गया हो
कभी नहीं लौट आने को-
1 NOV 2021 AT 20:15
जहाँ कि गलियों में हो,
यादों का बसेरा,
पुरानी मुलाकातों की ख़ुशबू,
चाय की टपरी पर बातों की गरमाहट,
पेड़ों पर बीते बसंत,
हवा में सुरमयी वक़्त के नगमे!
हम निकल जाते हैं शहर से,
चले जाते हैं कहीं बहुत दूर,
पर शहर यूँ ही रह जाता है
हमारे भीतर... हर पल!-
10 AUG 2021 AT 21:35
Love!
Guides, the Lost,
Heals, wounds and scars,
Turns broken pieces,
Into a beautiful picture.-
24 JUL 2021 AT 21:02
कौन सी ताउम्र ज़िंदगी गुजारनी थी,
दो पल कि मुलाकात थी, शिकायतों में गुज़र गयी-