Shubhra Banerjee  
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Joined 15 November 2018


Joined 15 November 2018
21 MAR 2022 AT 14:09

मेरी नज़्म अधूरी है
अंधेरे बहुत हैं रोशनी की बस्ती में,
ऐ दिल तेरा जलना ज़रूरी है
ज़िंदगी तेरी बज़्म में ठहरें हैं हम,
मुलाकात का एक बहाना ज़रूरी है।
जायज़ नहीं अब, तुझसे कुछ और मांगना,
हर तमन्ना हो पूरी,यह कहां ज़रूरी है
मुकम्मल हो जाती,तो फ़िर बात ही क्या थी,
इत्मिनान होने के लिए, इंतज़ार ज़रूरी है।
कह देते हैं हर बात दिल की, गुस्ताख़ी तो देखिए,
मसला बढ़ जाएगा,हमें अब भी रोक लीजिए
तुझसे ही गुज़ारिश है,तेरा शुक्रिया ज़रूरी है,
तेरे अहसास के बगैर,मेरी नज़्म अधूरी है।

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19 MAR 2022 AT 21:22

चाह कर भी
हर बार मनाया दिल को,जब-जब हुआ उदास,
आंखों ने भी तेरी,कभी न छोड़ी आस
दूर रहकर भी ज़िंदगी,हैं कितने तुम्हारे पास,
हम में भी कोई बात होगी,जो हैं तुम्हारे इतने खास।
वादा नहीं लिया कोई,ना ख्वाहिशें थीं ज्यादा,
तुमसे शिकायतों का कभी,था नहीं इरादा
बस इक गुज़ारिश थी, खुशियों को हमारा पता देना,
कुछ देर तो ठहरें, ज़रा यह भी बता देना।
हैरान हैं कि तुझसे, नाराज़गी भी रहती नहीं,
ज़िंदगी तेरी महफ़िल में,आंखें कुछ कहती नहीं
सोचते हैं जब भी,अब कुछ ना बोलेंगे तुझसे,
चाह कर भी पर,सांसें चुप रहती नहीं।

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18 MAR 2022 AT 9:22

होली के रंग
लाल-पीला,हरा-गुलाबी,जाने कितने रंग,
होली के रंग में,मन में छाए उमंग
गली-मुहल्ले में रौनक है,हो रही है हुड़दंग,
तरस-तरस कर आया यह दिन,रहे अपनों का संग।
बैर द्वेष सब जल जाएं,होलिका के संग,
मोहन की मुरली ने छेड़े, ब्रज में फिर तरंग
भर पिचकारी मुंह पर मारी,राधा फिर देगी अब गारी,
कर के बहाना पनघट पर आना,कान्हा तू तो बड़ा उद्दंड।
अबकी फाग गाए हैं राग,रीत प्रीत की गई है जाग,
नैनों में आस,मन में विश्वास,आएंगे श्याम
बन जाएंगे बिगड़े सब काम
शुभ हो होली,जीवन में लाए प्रेम के रंग।

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16 MAR 2022 AT 9:08

चलो अच्छा हुआ
हर बार हमें हैरान किया,बदलती रही मिज़ाज ऐसे,
समझने की फ़िराक में,किया हो लिहाज़ जैसे
रास्ते बदल दिए तूने,जब -जब आए करीब,
साजिश थी तेरी ज़िन्दगी,या खेल रहा था नसीब।
तेरी रहनुमाई के गवाह हम थे,और इल्ज़ाम हम पर लापरवाही का,
तोहफ़ों में इतने दिए तर्जुबे तूने,मिसाल बन गए हैं
बर्दाश्त की हद तो देख,कुछ न मलाल रह गए हैं,
हमसे क्यों बैर है तेरा,हम क्यों कोई गैर हो गए हैं।
मसला अब हिसाब का नहीं, नुकसान-नफा हुआ करे,
खैरियत इतनी है कि,तेरे ख़ैर की दुआ करें
एक गुज़ारिश आखिरी है,हो सके तो कुबूल कर,
जो हुआ चलो अच्छा हुआ,अब नए कुछ उसूल कर।

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15 MAR 2022 AT 23:40

कल तो अजनबी है
अनदेखा अनजाना है कल,
जाने आएगा किस पल
बहुरूपिया ज़िंदगी के जैसा,
पल-पल रूप लेता है बदल।
किश्तों में आने की आदत है उसकी
जल्दी जाने की ज़िद भी उसकी,
ठहरता नहीं पहलू में,दो पल
हरदम आगे जाता है निकल।
मन करता है मनमानी,और दुनिया मतलबी है,
रिश्तों में पड़़ जाती दरार,आज ही अभी-अभी
उम्मीदों के दामन में, इंतज़ार माहजबीं है ,
अब जब कल होगी देखेंगे,कल तो अजनबी है।

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15 MAR 2022 AT 15:05

दहलीज
अब छोड़ कर दायरे तहज़ीब के,
लांघ गई उम्र दहलीज
ज़िंदगी तेरे दीदार को,
आंखें भूल गई तमीज।
बेआबरू सी रुखसत हुई,सदमें में वफ़ा,
मुकद्दर ही शायद हमारा,था हमसे खफा
ख़ुद ही अपनी रुसवाई,देखी है करीब से,
बेकसूर थे हम, सज़ा मिली नसीब से।
नाज़ था बहुत हमें, यक़ीन की इमारत का,
इल्म ही नहीं हुआ,झूठ की सियासत का
फक्र करें सब्र पर अपने,या इंतज़ाम दिल की हिफाज़त का,
यह मसला अब है,रुतबा तुम्हारी शराफ़त का।

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15 MAR 2022 AT 12:46

इस फागुन में
अबकी खूब पलाश महके है,नयनों में महुआ छलके है,
मन बांवरा क्यूं बहके है,फागुन की अगन में देह दहके है
चढ़ी हुई धूप इठलाए,परदेसी पिया की खबर ना आए,
चांदनी मधुर मल्हार सुनाए,नव रस अंग-अंग में समाए।
प्रीत की रीत बड़ी अजब है,मिलना कभी होता ही कब है,
नैनों में सपन सलोने,टूटे जैसे बचपन के खिलौने
हंसती रही माथे की बिंदिया,गुम गई पायल और बिछिया,
बह गया आंखों का कजरा,सूख गया गजरा आंगन में।
ब्रज में होली खेलें मोहन,राधा का भीगा है यौवन,
कुम्हलाई नार नवेली,साजन तरसे तुम बिन होली
रस की फुहार करें मनुहार,अरज भरी मन की गुहार,
मल देना गुलाल ज़रा सा,आ जाना इस फागुन में।

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13 MAR 2022 AT 23:23

दूर कहीं
दूर बहुत है तेरा शहर,ना पता है पास न गली की खबर,
सुना है चांद वहां छिप जाता है,
या जमीन पर कब्जा कर जाता है
दूर कहीं किसी खिड़की पर,ठहरा नज़र आता है।
सुना है धूप बड़ी तेज है,तुझे निकलने में गुरेज है,
दूर कहीं खिलते हैं पलाश, ज़िंदगी हमें है तेरी तलाश
हम हो जाते हवा काश,छू सकते जाकर पास,
गीत -गजल लिखता है कोई,पर जाने कहां है दूर कहीं।
दूर कहीं कुदरत है हैरान,इस मसले का क्या ले इम्तिहान,
जान अभी भी बची हुई है,ये खुशियां तो खर्ची हुईं हैं
दूरियां तो कम न थी,फिर फासले कैसे ना रहे,
दूर कहीं जिंदगी के साथ, मुलाकात के सिलसिले कम न रहे।

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13 MAR 2022 AT 9:20

ज़िंदगी के कुछ पल
रेत की तरह फिसलती,पल -पल रंग बदलती,
ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी,कैसे जाती है तू बदल
कभी रुक सी जाती,पहलू में आकर,
कभी मुस्कुरा कर कहती,थोड़ा और चल।
बारिशों की बूंदों में,मचल -मचल जाती,
चांदनी रात में,पिघल-पिघल जाती
अल्हड़ सी इठलाती कभी,अपनी ही धुन में,
आज है जो वही सच है,कौन जाने क्या होगा कल।
हर सफा कोरा है, कहानी अधूरी है,
लफ़्ज़ों के मायने में,अश्क तो जरूरी है
वक़्त का नहीं भरोसा,किस मोड़ पर छोड़ जाए,
कुछ लम्हें तेरे साथ,जी रहें कुछ तेरे पल।

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12 MAR 2022 AT 8:53

शायद कहीं
आकर हाथों से छूट जाता यहीं,
ये डोर नाजुक सी है, उम्मीद की
ज़िंदगी देखना टूट जाए नहीं,
कल फ़िर हम रहेंगे ही नहीं।
किसी रोज़ यूं ही,थम जाए ज़मीं,
छिप जाए चांद आसमान में कहीं
सब्र का दरिया उफ़ान पर हो,
और मुस्कुरा कर,आ जाए तू वहीं।
कहानी अधूरी है,रहेगी अधूरी,
तमन्नाएं दिल की क्या होगी पूरी
शिद्दत से तेरा इंतज़ार करते हैं,
क़यामत आ जाए, मुलाकात हो तुझसे शायद कहीं।

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