चाह कर भी
हर बार मनाया दिल को,जब-जब हुआ उदास,
आंखों ने भी तेरी,कभी न छोड़ी आस
दूर रहकर भी ज़िंदगी,हैं कितने तुम्हारे पास,
हम में भी कोई बात होगी,जो हैं तुम्हारे इतने खास।
वादा नहीं लिया कोई,ना ख्वाहिशें थीं ज्यादा,
तुमसे शिकायतों का कभी,था नहीं इरादा
बस इक गुज़ारिश थी, खुशियों को हमारा पता देना,
कुछ देर तो ठहरें, ज़रा यह भी बता देना।
हैरान हैं कि तुझसे, नाराज़गी भी रहती नहीं,
ज़िंदगी तेरी महफ़िल में,आंखें कुछ कहती नहीं
सोचते हैं जब भी,अब कुछ ना बोलेंगे तुझसे,
चाह कर भी पर,सांसें चुप रहती नहीं।
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