शुभम् मिश्र प्रयागराज   (इश्क़-ए-प्रयागराज)
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इश्क़ और मयख़ाना
Joined 12 February 2020


इश्क़ और मयख़ाना
Joined 12 February 2020

उसने बेचा अपना ज़िस्म, उसे बाज़ारू बुलाते है!
तुमनें ख़रीद कर ख़ुद को इज़्ज़तदार बता दिया!!

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तेरी चाहत के इलावा है क्या?
तेरी इबादत के इलावा है क्या?
ग़ुरूर क्यों न हो तेरी मोहब्बत का...
तेरी मोहब्बत के इलावा है क्या?

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किसी की लिखावट पे हसने के बजाय,
कभी ख़ुद लिखने की कोशिश करना,
कितना ठहराव चाहिए होता है,
ख़ुद बख़ुद सब समझ आ जायेगा।।

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वन सूना सूना लगता है,
हे कान्हा कब तुम आओगे,
उपवन में फूल खिले फिर से,
मुरली कब मधुर बजाओगे,
कब से हूँ राह निहार रही,
कब नइया पार लगाओगे,
वन सूना सूना लगता है,
हे कान्हा कब तुम आओगे।।
गोपी गायें सब बिलख रहीं,
कब इनका मन बहलाओगे,
यमुना में घुसे विषधारी को,
कब सत्य की राह दिखाओगे,
वन सूना सूना लगता है,
हे कान्हा कब तुम आओगे,

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ख़ाली बैठे हैं, कोई काम नहीं है,
मयख़ाना है, मगर कोई ज़ाम नहीं है,
सिफारिश हज़ार बार आयी है, उनकी!
इश्क़ तो कर लें, मगर आराम नहीं है।।

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सज़ा मिल रही है वो भी कुछ गलतियों की,
बेवज़ह मिल रही है वो भी कुछ गलतियों की।

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जीये जा रहे हैं ज़िन्दगी बिना किसी मुक़ाम के,
लगता है अब न रही ज़िन्दगी कुछ काम की।।

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उसे न जाने क्यूँ जानना चाहते थे,
अनजान थे? अनजान ही भले थे।

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बदलने को तो सारा जहाँ बदल गया साहिब,
आपकी निगाहों का अंदाज़ आज भी वही है।।

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कब से अधरों की प्यास लिए,
नयना दर्शन की आस लिए
तेरे होने का अहसास लिए,
फिर से हो मिलन? विश्वास लिए..

अधरों की प्यास बुझाने को,
नयनों की आस मिटाने को,
इक बार पुनः तुम आ जाओ,
सारे अहसास भुलाने को।

लगता है अभी सताओगे,
थोड़ा सा और रुलाओगे,
अब बोल भी दो कब आओगे,
कब गहरी नींद सुलाओगे।

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