Shubhi Porwal   (©शुभी)
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Joined 29 March 2017


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Joined 29 March 2017
14 JUL AT 14:03

तेरा गलत होना मेरे सही होने का प्रमाण होता
तो कब का साबित कर दिया होता मैने,
पर मेरा आराध्य कभी गलत नहीं हो सकता
ये विश्वास हर तर्क से बहुत ज्यादा है मुझे।



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23 DEC 2024 AT 20:21

वो साथ चल रहे थे, मुझे लगा साथ है।
वो चले गए, मुझे लगा थक गए होंगे, आ जायेंगे।
मैं थमी, ठहरी, वो दिखे, मुझे लगा मेरे लिये आए है।
मैं मुस्कुराई, आगे बढ़ी, उनको देखा।
वो मुझे बिना देखे आगे बढ़ गए।
मैं रुकी, और बस रुकी रह गई।
और वो बहुत आगे बढ़ गए।

तब जाकर जीवन के इक मोड पर आकर समझ आया - कि

जीवन में कभी कभी कुछ दूर,
साथ चलने में शामिल होना
जीवन में शामिल होने-सा भ्रम देता है।
पर असल में कोई साथ कभी नहीं होता है।

सब अपने हिस्से का सफ़र पूरा कर रहे होते है और वहीं कुछ हम जैसे एक भ्रम के चलते पीछे रह जाते है।

जिनका न कोई आज बचता है और न ही कोई कल।
हम बस इक भूली हुई याद में ही सिमटे हुये रह जाते है।

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17 DEC 2024 AT 16:14

आज पहली बार मेरी असुरक्षाओं ने सुरक्षा का चेहरा ओढ़ने की ज़िद नहीं की मुझसे। आज पहली बार इसने मुझे नहीं चिढ़ाया। आज पहली बार असुरक्षा के भाव ने एहसास कराया है कि मुझमें कितनी कमियां सुधारने की शक्ति है। मुझे खुद पर कितना काम करना है। मैं इस काबिल हूं ही नहीं कि किसी को अपने साथ संजो कर रख पाऊं। मुझे खुद के भीतर बहुत कुछ ठीक करने की आवश्यकता है।
मैं हर रोज खुद में कुछ सुधार करने निकलती हूँ और हर रोज थोड़ी और पुरानी कड़वाहट लेकर वापस आ जाती हूं।
दिक्कत ये नहीं कि ये कड़वाहट है, दिक्कत ये कि हर रोज और ज्यादा असुरक्षित होती जा रही हूं, किसी और से नहीं, खुद से।
एक सच जो आज समझ आया कि वक्त आने पर राह बनाने वाले भी राय बना कर चले जाते है।
खैर! इन असुरक्षाओं से घिरी मैं ये सोच ही रही थी कि एक गाने ने मेरा ध्यान खींचा।

गाना था -
तू है तो दिल धड़कता है, तू है तो सांस आती है,
तू है तो घर घर नहीं लगता, तू है तो डर नहीं लगता।

ये अन्योक्ति है और शायद यही जीवन है।

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19 OCT 2024 AT 8:25

कल का इक हिस्सा कहीं अंदर ही रह गया है,
बस दुआ यही है कि,
जो मैंने खोया है, वो ता-उम्र तुम्हारे साथ रहे।

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29 JUL 2024 AT 8:37

कई दफे वो मुझे बहुत अजनबी सा लगता है,
और कई दफे बहुत अपना,
पर उसके हर अंश में,
मैं उससे दूर कभी नहीं हो पाई,
कभी उसका ख्याल,
उसका अक्स,
उसकी बातें,
उसकी गहराइयों से उसके बदलाव तक,
उसका न होना,
कभी सोच ही नहीं पायी मैं,
मुश्किल ये नहीं,
कि जीना कैसे होगा,
मुश्किल ये कि,
वो नहीं तो क्या होगा?
उसकी घड़ी से उसके इत्र तक,
सब कुछ होना चाहती हूं मैं।
खैर! वो है, नहीं है,
पर मैं उसकी ही हूं,
ये ही जीवन है,
जीना है।
बस।
बाकी हरि जाने।

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10 JUL 2024 AT 23:15

किसी के साथ में ये भूल जाना कि मेरे हक में वो कभी थे ही नहीं, आसान तो नहीं,
मगर, असल में एक और ता - उम्र घाव बनकर हमेशा साथ रह जाता है।

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4 MAR 2024 AT 0:08

सुकून और तुम।

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6 JAN 2024 AT 21:44

मैंने वो सब करने की कोशिश जो ये दुनिया कठिन मानती है,
काश! आपको गले लगाना भी नसीब हो पाता, पापाजी।🌸🤍

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23 NOV 2023 AT 21:28

मैं उससे फंसना चाहती थी,
मैं उसमें फंसना चाहती थी,
उसकी घड़ी और हाथों की उंगलियों सी,
उसके बालों तक,
कुछ भी होने को तैयार थी,
मैं तैयार थी,
उसकी मुस्कुराहट उसका इत्र होने को भी।

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6 NOV 2023 AT 22:27

डियर पापा जी,

जो अंजान रास्ते आप संग बहुत अपने लगते थे,
आज वहीं, जान - पहचान भी बहोत चुभने लगी है,
नहीं जानती क्या करूं क्या नहीं,
बस आपकी बेटी अब बहोत सीमित सी हो गई है।
सुकून की तलाश अब नहीं करती है वो,
अभी न जाओ छोड़ कर गाना भी अब उसको आंसुओं की ओर नहीं ले जाता है,
मगर न जाने क्यूं चिट्ठी न कोई संदेश पर आज भी उसका ज़ोर नहीं चलता है,
भले जताना छोड़ दिया हो उसने,
मगर तारों से न जाने क्यूं इतनी करीब सी हो गई है,
आपकी बेटी न जाने क्यूं इतनी अजीब सी हो गई है।

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