फिर एक दिन ऐसा भी आयेगा,
जब आपको दो और दो चार कहने में हिचक नहीं होगी।
आप लंबी सांस भरके उन सबके मुँह पर कह दोगे कि,
पाँच और छः का नाटक आपको मुबारक, मैंने जाना है कि दो और दो चार होते हैं।
उस दिन आपको यह डर नहीं रहेगा कि अगर मैं अकेला पड़ गया तब क्या होगा,
तब आपको पहली बार दिखाई पड़ेगा कि आसमान इतना बड़ा कैसे है,
मेरी जहाँ तक नज़र है सब जगह दिखाई दे रहा है,
आप देखोगे की कैसे सूरज डूब रहा है सचमुच में,
अब ये कोई सुनी हुई सौंदर्य कविता की बात नहीं रही।
आप जानोगे की हवा दिखती नहीं है फिर भी गुजर रही है तुमसे छूकर,
आप देख पाओगे कि जरा सी हवा चलने पर नाचने लगते हैं पेडों पर लगे हुए पत्ते।
आप जानोगे कि एकांत अब अकेलापन नहीं है,
मनुष्यों की भाषा के अलावा भी जीव जंतुओं की आवाजें शोर कर रही हैं,
अब आप जानोगे की शांति प्रकृति में है ही नहीं
तो फिर उसे प्राप्त करने के प्रयास सब व्यर्थ ही हैं।
अब आप पाओगे कि एलईडी की रोशनी में सब चकाचौंध हो गया है,
इसलिए आप बत्ती बन्द करके देखने लगते हो चाँद और तारे।
एक दिन आप देखोगे सब वैसा, जैसा वो है,
आप पाओगे कुछ भी नहीं बदला मगर सब बदल गया।
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