चाय की प्याली का कंबल से दोस्ताना
थके मन को जैसे सुकून का गले लगाना
उफ्फ! ये इतवार का आना..-
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चांद के सिर चढ़ जाने से
नहीं घिरता है अंधेरा!
झिंगुर की आवाज़ नही बताते
सन्नाटे में छिपा है शोर!
सुनी सड़क नहीं दिखाती
घर में भीतर चहल कदमी करते पांव!
बर्तन की ढनमनाहट के रुकने से
खत्म नहीं हो जाती है भूख!
बंद बत्ती का अर्थ नही होता
जागने वाला बचा नही कोई!
बिस्तर पे लेटा आदमी नहीं बताता
किसी का नींद में होना..
रातें एक जैसी नहीं होती सबकी..
ये अपनी परिभाषा से हर पल
द्वंद करती रहती हैं..-
आंखें सुख गई, बाट जोहते हुए मेरी
चौखट पे मगर कत्थई नूर नहीं बिखरा है!
गेंदे मिले हैं, गुलाब मिला है
मोगरे का मगर कोई सुराख नहीं मिला है!
कोई ख़ोज लाओ बहारों का मौसम ज़रा
गली में अरसे से पूरा चांद नहीं निकला है...-
बहुत मशगूल मिले चहरे, दिनचर्या में उलझे..
फुरसत के लम्हों का आलम जा चुका है..
हाजरी भर से अदा हो रही कीमतें यहां
मुहब्बत निभाने का दौर शहर से जा चुका है!-
"I want to hem a red rose on the pocket of your white shirt.."
"No... Then it won't be formal any more"
Little did he know that
"Take it and do whatever you want to!!!"
could be an answer..
-
यात्रा केवल पड़ाव दर पड़ाव को
पार करना नहीं होता..
यात्रा में सम्मिलित होती है
ख़ोज
जो आदमी को
मंज़िल मिलाने के लिए नही
खानाबदोश बनाने की जिम्मेदार है..
मंजिल.... यात्रा का हिस्सा है-
जो भींगा दे वो नज़र, जो रंगा दे वो इश्क!
करीब से देखो तो रोज़ ही होली खेलते हैं हम...-
"Gender Equality Today
For a Sustainable Tomorrow"
Read the caption...
(International women's day special)
- Shubhangi Aryan-