हां मेरी मानो तो, जिस्मो को छोड़कर एक बार रूहों में झांक कर देखलो, आज काला रंग ना देखकर, इंसानों को जान कर देखलो। हिदायतें देने से पहले, खुद को थोड़ा आज़माकर देखलो, हर जिस्म पर बोलने से पहले अपनी जुबां को पलभर के लिए संभाल कर देख लो।
कुछ कमी हममें ही थी पर हम औरों के दाग ताड़ते रहे... पास जाते उनके, और वह हमें ठुकराते रहे हम कॉल मिलाते रहे और वह नजरअंदाज करते रहे । कमी थी हमने कुछ, जो दो दिन के बाद हमें वह टालते रहे हम उन्हें बुलाते रहे और अपने दाग उभारते रहे।
तुम रख लो इस मुस्कान को भी जब मेरे प्यार में तुमको कमी नज़र आए, अकेला कर दो फिर से अब जब तुम्हारी चाहत ही तुम्हें वो राह दिखाएं। कहते थे तुम ये अकेलापन मेरी पैदाइश है अब भी नहीं मानोगे कि यह तुम्हारी इज़ाफियत का करा है?
कुछ सच हमारे आज में ऐसे छीप जाते हैं जैसे सुरज की तेज़ किरणों के बीच छीप गया हो चांद। और, कुछ झूठ हमारे आज में ऐसे घुलते-मिलते हैं जैसे कूरूप औरत के श्रींगार से उभरता उसका स्वरूप।
अब नहीं कहूंगी कभी आकर ज़रा मेरे बालों को सहला देना। अब नहीं कहूंगी कभी इस खुली किताब को पढ़ लेना। अब नहीं कहूंगी कभी इन आंखों की नमी को सुखा देना। अब नहीं कहूंगी कभी मुश्किल में ज़रा साथ तुम निभा देना।