Shubham Yadav  
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•A Chai Obsessed
Joined 2 February 2018


•A Chai Obsessed
Joined 2 February 2018
30 DEC 2021 AT 19:43

कोई सलीक़ा सिखाएं चांद को,
यूं तारों का सरेआम टूटना ठीक नही।

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24 JUN 2021 AT 23:01

बरसात के पहले सा सुहाना मौसम हो तुम,
बरसात के बाद का बिगड़ता आलम हूं मैं।

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11 MAR 2021 AT 22:26

मुंह पर है चासनी,दिल में है ज़हर,
मुबारक हो आपको आपका शहर।

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8 MAR 2021 AT 21:22

तसल्ली दे रखी है दिल को,
कल हम सन्दूक लाने वाले हैं।

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4 JAN 2020 AT 18:39

तमाम भीड़ लगी है मुझे बिगाड़ने में,
मैं भी सुधरा हुआ होने की बात पर कायम हूं।

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1 AUG 2019 AT 23:28

चांद होने के भी तो बहुत से मसलें हैं,
ठीक ही है जो हम ज़मीं की नस्लें हैं!

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30 JUL 2019 AT 21:13

बादलों को भी क्या कोसे,
जब हवा ही पराई हो तो!

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25 JUL 2019 AT 21:32

शरीफ़ तो हर कोई है यहां पर,
देखना ये है कि पर्दा किसका उठता है!

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18 JUL 2019 AT 21:50

मैं एक बहुत अच्छा इंसान हूं,
बस ये मुझे सबको बताना पड़ता है!

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13 JUL 2019 AT 23:18

इस रात के अंधेरे में भी बहुत कुछ साफ है,
अगर थी गलती उनकी, मेरे तरफ से सब माफ़ है!

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