वो वक्त बडा खुशहाल था, वो यादें बड़ी हसीन थी
वो कहने को तो स्कूल था, पर हकीकत में वो जन्नत थी
दोस्त बहुत थे उसमें, पर वो एक सबसे खास था
वैसे तो वो गुस्सैल था, पर प्यारभरी उसकी मुस्कान थी
जो लम्हे बिताये थे उसके साथ वो लम्हे बडे हसीन थे
यार बहुत थे उसके, पर हमारी यारी सबसे निराली थी
वक्त बदलता है और लोग भी वक्त के साथ बदलते है
पर उस दोस्ती की हिफाजत में वक्त की बड़ी नजाकत थी-
Graduated from
Delhi University...
Kirrori mal collage...
Chemistry (hons.)2020
R... read more
"शुन्य" रब से उसकी खुशियों की अरदास करता है
हर रोज उसके मुस्कराने की वजह तलाश करता है
यौम-ए-पैदाइश मुबारक हो उस शख्स को
जो मुझ जर्रा-ए-नाचीज को बेहद खास करता है-
इश्क़ वो है, जो रिश्तो में सदाक़त मांगता हैं
करने वाले के बीच ये नज़ाकत मांगता हैं
जिस दौर में जिस्मानी हवस भरी पड़ी हैं
उस दौर में, ये रुहानी हिफाज़त मांगता है-
इस कद़र फरियाद करता है "शून्य" तुम्हें पाने की
जैसे नदियाँ तलाश करती हैं मुहाने की !-
वो मर्द बना फिरता है उसके जिस्म पर हाथ उठाकर
वो गुमान में फिरता है उसके लिबास पर उंगली उठाकर
आज "महिला दिवस" की बधाई देते हो मियां
उसके पीछे उसी के नाम से गालीयां लगाकर-
मैनें वक्त बदलता देखा है, मैनें लोग बदलते देखे है
तुम जिस्म की बात करते हो, मैनें जज़्बात बदलते देखे है।-
खुदा भी नाज़ करता होगा खुद पर
उस बेशकीमती शख्स को बनाकर
इस जहां में बुलंदीयो का परचम लहरायेगी
ये सोचकर फक्र करता था वो बाप बेटी पर
वो मां तमाम रातें इस फिक्र में गुज़ारा करती हैं
कि कैसी होगी "लाडो" घर से दूर उस घर पर
भाई और जीजी भी अरमान लगाए बैठे हैं
कि कुछ बनकर लौटेगी "छोटी" घर पर
"शून्य" कोटि कोटि अभिनंदन करता है उन माँ बाप को
इस हुस्न ए जन ने मुहब्बत बिखेरीं थी जिस घर पर
-
हम कुछ इस कदर मसरूफ़ हुए उनकी मुहब्बत में,
की खुद से बेवफ़ाई का अंदाज़ा न लगा पाये।-
शुक्र है वो इश्क़ मुक्कमल ना हुआ
जो मुक्कमल होता तो वो इश्क़ ना होता-
वो कुछ इस कद़र सियासत करते है
कि आवाम से ज्यादा हुस्न सँवारा करते हैं-