जिंदगी के इस सफर में पड़ाव बदलते रहे
पलकें झपकती रहीं और गांव निकलते रहे
दूर तलक था जाना ये सोंच करके थे चले
हम खड़े रहे वहीं मगर पांव थे चलते रहे
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जरा खामोशी रहती है,बहुत कमी रहती है,
साफ होती हैं दीवारें पर धूल जमी रहती है,
भीड़ में रहता है मन एक मुस्कुराहट के साथ
रात होते ही क्यों आँखें फिर नमी रहती हैं ?
🐼-
जमाने में जी सकें इसलिए जप और जाप को माँगा
हम जानते हैं माया पाप है फिर भी पाप को माँगा
जब समझ जगी जानने की तुम्हें हे भगवन तब
अपने जीवन में सिर्फ मौजूदगी की आप को माँगा-
ये महीना चल रहा भले सावन का है
मेरा यार मेरे बिल्कुल मन का है
ये दिन भले तुम्हारे जन्म का हो पर
ये दिन अब से मेरे भी जीवन का है-
चंद शब्दों को भी एक कहानी में मोड़ा
एक छोटे ख्याल को भाव संचार से जोड़ा
इसलिए ही शिकायत पन्नों की जायज़ है
ये कहते हैं मुझसे के लिखना क्यों छोड़ा
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बचपन से बनाई जो तुमको वही निशानी दे दी
साथ जीने मरने की जिसने तुमको जुबानी दे दी
तुमने कर लिया कैद उसको इश्क के नाम पर
तुमसे इश्क करके जिसने खुद की कुर्बानी दे दी
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खामोश दिल को शहर अमीनाबाद करने को
महकती खुशबू से दिन को आबाद करने को
हम कश्मकश रोज़ करते रहते हैं क्योंकि
समय! अजी वो तो बहुत है बर्बाद करने को-
किसी को किस्मतों में मिल रही है जिंदगी
किसी को कद्र नहीं के मिल रही है जिंदगी
हाल - ए - जिंदगी को वो कैसे बयां करें
जो चाहते हैं पर नहीं मिल रही है जिंदगी-
तुझे छू कर हवाओं सा गुजरने का दिल करता है
जैसे बिखरे धूप शीशे पर बिखरने का दिल करता है
मैं जितना करता था तुझसे उतना ही तो करता हूं
मगर इस मन को तुझपे और मरने का दिल करता है-
हो चुकी थी शाम , मानो जैसे भोर था
दौर परीक्षा का था , तू मेरा एक छोर था
चल रही थी गाड़ी धीमी रफ्तार में और
चाँद देखने हमें आया हुआ बाएं ओर था-