Shubham Verma   (शुभम्)
34 Followers · 31 Following

read more
Joined 16 June 2018


read more
Joined 16 June 2018
2 MAY 2022 AT 16:06

कैसे मनाऊं मैं ये जश्न ईद का....
अब तक मेरा चाँद मुझसे दूर है।

-


23 MAY 2020 AT 2:05

समझों कहीं हक़ अपना तो जता भी लेना चाहिये,
फासलें होने लगे महसूस तो बना भी लेना चाहिये।

-


22 MAY 2020 AT 17:16

Being alone in the toilet is a reminder that you're always alone when shit goes down.

-


21 APR 2020 AT 15:38

ग़र तुमसे रोज़ाना छिप छिप कर मिलना है तो,
नींद आती रहे रातों को, इतना काफी है।
इबादत कभी हमको करनी हो जो,
तुमसे बातें कर लूँ , इतना काफी है।
धड़कने तुमको छूकर गुजरती रहे,
दिल्लगी के लिए, इतना काफी है।
तुमको ख्यालो में रख कर सांसें मैं लूँ,
ज़िन्दगी के लिए, इतना काफी है।
तुमको मंजिल मानकर बस चलता रहूं,
सफर के लिए, इतना काफी है।

-


19 APR 2020 AT 16:03

वो जो मुझसे रोज़ इश्क़ की बातें करता आया था......
ना जाने आँखों में मेरी कैसे ख्वाब संजोता आया था?

नहीं मिलूंगा फिर कभी, बस ये खीझ में कहकर मैं....
उसके घर से अपने घर तक रोता-रोता आया था।

अब जो जागता रहता हूँ देर रातों तक मैं....
सोचता हूँ किस आस में अब तक चैन से सोता आया था?

शायद दूर रह कर ही ज्यादा मिल पाया हूँ उससे,
जिसके साथ में रह कर, उसे ही खोता आया था।

-


18 APR 2020 AT 15:59

पैदा होने के कई साल बीतने पर भी मैंने सीखे नहीं शब्द,
लेकिन फिर भी पाया माँ का लाड और पिता का दुलार।
ऐसे सीखा है मैंने कि माध्यम का मोहताज नहीं है प्यार।
एक अनजान जलते शहर में किसी का हाथ थामे
उससे किया जब वादा कि उसे कुछ होने न दूँगा।
ऐसे सीखा है मैंने कि झूठे वादे सही समय पर किये जायें,
तो दे सकते है न जाने कितनी उम्मीदें।
बात करते करते दो अलग शहरों में होकर भी,
दो लोगो ने देखा एक ही चाँद।
ऐसे सीखा है मैंने आवाज़ों की हदें समझना और खामोशियों को सुनना।
अँधेरे कमरे में छत पर घूमते पंखे को
बेवजह निहारते हुए, अपने ही घर में
खुद को अजनबी महसूस करते हुए।
ऐसे सीखा है मैंने कितना लाज़मी है
कभी कभी हर चीज़ से अनमना हो जाना।
कंधो के अभाव में, तकियों को भींच कर रोते हुए,
ऐसे सीखा है मैंने खुद के लिए कंधा बन जाना।
बहुत सच्चाई से बहुत मेहनत करने के बावजूद,
जब एक एक झूठ से हारा गया तो जाना ,
जीवन की सारी लड़ाईयां हम जीत नहीं सकते,
पर ज़िन्दगी की लड़ाई में खुद को तैयार करते हुए,
ऐसे सीखा है मैंने ज़िन्दगी से यूँ ही लड़ते जाना।

-


25 DEC 2019 AT 12:08

Dear Santa,
I wrote a letter to you,
years before when I had
no sense to understand
that you do not exist.
Today, I am writing a letter
when I am all adult and
sensible while my wish
list is blank because
I have already met,
the best gift I could get,
I don't know if it was you
or anyone else,
But thanks to to the universe,
for making it happen.
I wish I could tell it all
to the very gift of mine
but I don't wanna ruin the distance
it likes to maintain.

-


23 NOV 2019 AT 11:58

आपने मुझको जो यूँ रुस्वा किया है,
शुक्रिया! जो भी किया,अच्छा किया है।

कब तक दर्द को छुपता झूठी मुस्कान से,
टूटकर किस्मत से जो समझौता किया है।

अब हर दर्द को दर्द की तरह लेकर
बिना दिखावे जीने का फैसला किया है।

पीठ पर पर्वत के जितना बोझ है लेकिन-
देखिये जज़्बा कि सर ऊँचा किया है।

ज़मीन पर खड़े रहकर ही हमने
अब आसमान को छूने का फैसला किया है।

-


20 NOV 2019 AT 20:03

ज़िन्दगी से बहुत दूर होकर,
जीने का सलीका ढूढ़ता हूँ।

चिंता न थी जिसमे, सिर्फ मुस्कुराता,
अपना वो ही चेहरा ढूढ़ता हूँ।

घुटन है आसमान में भी अब तो,
फिर भी उड़ता परिन्दा ढूढ़ता हूँ।

न जाने मिलूगाँ भी या नहीं,
फिर भी खुद में खुद को ही ढूढ़ता हूँ।

मुझे काफिर कहा जिसने उसी में-
खुदा-भगवान-ईशा को ढूढ़ता हूँ।

-


12 OCT 2019 AT 23:03

क्यों फिक्र करें हम कल की,
सब रब की मर्जी का होगा!

वो अन्याय नहीं करता है,
जो भी हो,अच्छा होगा!

तेरे साथ हँसे-रोये वो,
कुछ तो तुझसे रिश्ता होगा!

खुश हो या नाराज रहे पर,
जो अपना है,अपना होगा!

हमको वो मिल ही जायेगा,
जो भी हमको मिलना होगा!

-


Fetching Shubham Verma Quotes