ग़र तुमसे रोज़ाना छिप छिप कर मिलना है तो, नींद आती रहे रातों को, इतना काफी है। इबादत कभी हमको करनी हो जो, तुमसे बातें कर लूँ , इतना काफी है। धड़कने तुमको छूकर गुजरती रहे, दिल्लगी के लिए, इतना काफी है। तुमको ख्यालो में रख कर सांसें मैं लूँ, ज़िन्दगी के लिए, इतना काफी है। तुमको मंजिल मानकर बस चलता रहूं, सफर के लिए, इतना काफी है।
पैदा होने के कई साल बीतने पर भी मैंने सीखे नहीं शब्द, लेकिन फिर भी पाया माँ का लाड और पिता का दुलार। ऐसे सीखा है मैंने कि माध्यम का मोहताज नहीं है प्यार। एक अनजान जलते शहर में किसी का हाथ थामे उससे किया जब वादा कि उसे कुछ होने न दूँगा। ऐसे सीखा है मैंने कि झूठे वादे सही समय पर किये जायें, तो दे सकते है न जाने कितनी उम्मीदें। बात करते करते दो अलग शहरों में होकर भी, दो लोगो ने देखा एक ही चाँद। ऐसे सीखा है मैंने आवाज़ों की हदें समझना और खामोशियों को सुनना। अँधेरे कमरे में छत पर घूमते पंखे को बेवजह निहारते हुए, अपने ही घर में खुद को अजनबी महसूस करते हुए। ऐसे सीखा है मैंने कितना लाज़मी है कभी कभी हर चीज़ से अनमना हो जाना। कंधो के अभाव में, तकियों को भींच कर रोते हुए, ऐसे सीखा है मैंने खुद के लिए कंधा बन जाना। बहुत सच्चाई से बहुत मेहनत करने के बावजूद, जब एक एक झूठ से हारा गया तो जाना , जीवन की सारी लड़ाईयां हम जीत नहीं सकते, पर ज़िन्दगी की लड़ाई में खुद को तैयार करते हुए, ऐसे सीखा है मैंने ज़िन्दगी से यूँ ही लड़ते जाना।
Dear Santa, I wrote a letter to you, years before when I had no sense to understand that you do not exist. Today, I am writing a letter when I am all adult and sensible while my wish list is blank because I have already met, the best gift I could get, I don't know if it was you or anyone else, But thanks to to the universe, for making it happen. I wish I could tell it all to the very gift of mine but I don't wanna ruin the distance it likes to maintain.