Shubham Ved   (वेद)
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Joined 20 March 2019


Joined 20 March 2019
2 MAR 2020 AT 10:50

माँ हिन्दी के सबसे लाड़ले बेटे "कुमार विश्वास जी" की प्रसिद्ध कविता "कोई दीवाना कहता हे" से प्रेरित कुछ लिखने का प्रयास किया हे,
निवेदन हे की इसे 'कोई दीवाना कहता हे' की धून पर गुनगुनाने की कोशिश करें.
मेरा 'विश्वास' यह आप सभी को बेहद पसंद आएगी...


(कविता निचे अनुशीर्षक में पढ़ें 👇🙏)

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22 FEB 2020 AT 12:16

जब हटाती हे रुख़ से वो नक़ाब धीरे धीरे
लगे, बादलों से निकलता हो चाँद धीरे धीरे

आँख भर के दीदार-ए-यार जो ना हो पाये
लगे, जिस्म से निकलती हो जान धीरे धीरे

बगैर उसके गुज़र रही हे ज़िंदगी इस क़दर
लगे, ढल रही हो ज़िंदगी की शाम धीरे धीरे

लगी जो आग शहर-ए-दिल में बुझाए न बुझे
लगे, जलते हों ख्वाहिशों के मकान धीरे धीरे

उजालों से अंधेरो की तरफ़ चल पड़ा कारवाँ
लगे, खत्म हो रहा हे जश्न-ए-चराग़ाँ धीरे धीरे

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14 FEB 2020 AT 15:23

किसी शाख से लिपटी लताओं से सुना था
किसी मौसम ए रंगीं फिज़ाओं से सुना था

साल में एक दिन भी आता हे मोहोब्बत का
एक दिन के प्रेमियों की कथाओं में सुना था

सात दिन तक आशिक़ी करना हे इश्क़ क्या
सात जन्मो की कहानी हे इश्क़ मैने सुना था

हर बार इश्क़ दो तरफा हो मुमकिन तो नही
एक तरफा भी हे इश्क़ तो इश्क़ हे सुना था

जो मुकम्मल मिल जाए तो वो इश्क़ ही क्या
जो मुकम्मल बिछड़े ना वो इश्क़ हे सुना था

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11 FEB 2020 AT 15:04

महबूब का किया जो वादा था
बड़ा ही सीधा सादा था

गलति उसकी कभी ना थी
तक़दीर में इश्क़ ही आधा था

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8 FEB 2020 AT 14:36

के चाहे ऐतबार हो, या इन्कार हो जाए
मगर अब मुहब्बत का इज़हार हो जाए

तु रक्खे क़िताबों में छुपा कर खत मेरे
खुदा करे तुझे भी मुझसे प्यार हो जाए

मुहब्बत को ख़ता कहता हे यह ज़माना
तुझे मुझसे यह ख़ता कंई बार हो जाए

तेरे संग जो न गुज़रे वो ज़िन्दगी ही क्या
तेरे होने से हर दिन इक त्यौहार हो जाए

'वेद' हे आशीक़ तेरा, तो फ़िकर क्या हे
फिर चाहे तुझे इश्क़ का बुखार हो जाए

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7 FEB 2020 AT 18:37

आंगन के शजर पे पंछियों की चहक आज भी है
मेरे ज़हन में उसकी चूड़ी की खनक आज भी है

ज़माना लग गया भुलाने में शक्ल उस शक्स की
लेकिन क़िताबों में गुलाबों की महक आज भी है

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14 JAN 2020 AT 12:54

अपने वास स्थान से कट जाने और कट कर कहीं खो जाने के डर से बेख़बर, बेखौफ़ बस उड़ते चले जाना और अनंत आसमान में खुद को विलीन कर देना,
जहाँ अनंत संभावनाएं हें खुद को साबित करने की, जहाँ संघर्ष के बादल तो हें लेकिन अवसर रुपी हवा भी विद्यमान् है.,

अद्‌भुत कला हे पतंग की भी,
काश की हम भी इस कला को खुद में आत्मसात् कर पाते।

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31 DEC 2019 AT 16:19

खूबसूरत यादों का इक गुलदस्ता हे बिता कल
अनुभवों की किताबों से भरा बस्ता हे बिता कल

आज हर चीज़ से महंगा हे यहाँ वक़्त अपनो का
देखो पलट के कल को कितना सस्ता हे बिता कल

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29 DEC 2019 AT 18:32

सहमे लफ्ज़ों में पुछा मैने
मोहब्बत हे मुझसे?

बेबाक लहज़े में कहा उसने
" बेइंतहा "

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19 DEC 2019 AT 16:14

देख कर धरती की हालत आसमान हे रो रहा
घाव को निर्दोष अपने अश्कों से हे धो रहा

दिया न सोने सिसकियों ने मासुमों की मुझको मगर
उन सिसकियों को लोरी समझ ये हुक्मरान हे सो रहा

(पुर्ण कविता अनुशीर्षक में पढ़ें 👇🙏)

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