Shubham Tripathi Shreesh   (श्रीश मणि त्रिपाठी 'शुभम)
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Joined 7 December 2017


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YESTERDAY AT 1:36

Future का हर plan यहाँ पर सफल कहाँ होता है,
रातों के सपनों का कोई कल कहाँ होता है।
भाग्य और सामर्थ्य तुम्हारा उसके मन की मर्जी हैं,
ईश्वर के मुश्किल प्रश्नों का हल कहाँ होता है।।

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दोस्त कह देने से, मुख़ातिब हर किसी से नहीं होते हैं,
जिसे तवज्जो दिया करते हैं, हम उसी के नहीं होते हैं।
दोस्त कह देना, दोस्त होने से आसान होता है,
किसी की जरूरत से ज्यादा, हम किसी के नहीं होते हैं।।

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राज हैं, कुछ सीमाएं हैं, पारस्परिक सम्मान है ये।
दोस्ती तो मत कहना, बस जान पहचान है ये।।

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नेक दिल तुम हो, कि हम दिल हार कर बैठें।
बात ही बातों में बातें चार कर बैठें।
साथ देने का किये वादा मुकम्मल ख्वाब तक।
पर जरूरी है न कि हम प्यार कर बैठें।।

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'माँ'
किससे बोलूँ मन की बातें, कौन हरे पीड़ा इस दिल की,
आपका ना होना मुश्किल है, कौन निकाले हल मुश्किल की।
आँसू निकले उससे पहले, हँसी लबों पर रख देती थीं,
बोलो ना अब आप ही कैसे, तड़प मिटाऊँ रोते दिल की।।

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धर ले मन-धारा का प्रवाह, जो भाव बराबर तोल सके।
बोझिल मन ढूंढ़े जिससे दिल बिन बोले सब बोल सके।।

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दिल की बेचैनी अब, कम कहाँ होती है,
निभाना पड़े रिश्ता तो, लगन कहाँ होती है।
अपनों में खुशियों की उम्मीद देखते हम,
पर जुस्तजू सुकून की, खतम कहाँ होती है।।

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आईना हो आप खुद के, चित्र भी खुद आप हो,
आप जैसे लोग मिलते ही कहाँ हैं आप को।।

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जटिल है, कठिन है, ये अर्ज़-ए-मुरव्वत है,
इनायत, इबादत, बगावत की कुव्वत है।
विरह की है दोजख, ये मन्नत-ए-जन्नत है,
समझ ना जो आये, वही तो मुहब्बत है।।

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धूरी ही विच्छिन्न हो गयी, बिखर चुके हैं छोर सभी।
ना सपना ना शौक शेष है, दुख में हैं घनघोर सभी।।
लेकिन वो धूरी अव्वल थी, छोर-छोर गुणवान किया।
बन उसके मस्तक की शोभा, निखरेंगे सिरमौर सभी।।

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