दूसरे के बगीचे को देख मैं खुश होता रहा!
उजाड़ के बाग अपना इस कदर सोता रहा!
जागा जब नींद से रात के ऐसे पहर में,
कि रात पूरी रही और सारी रात रोता रहा!— % &-
"मेरी पहचान ही मेरी मुहब्ब्त है;
पहचान वो, जो मुझसे रूठी है।"
हकीम भी हंसे जब दर्द पर तेरे,
बताइए सनम अब कहां जाइएगा?
जकड़ के रखा है खुद को खुदी ने,
गज़ब है अदा क्या कसम खाइएगा!— % &-
ना हुए हम अहम किसी के ना ही गैरज़रूरी।
ना ही किसी के मुकम्मल ना ही चाह अधूरी।-
रिवायत तो है टूट जाने की, रियायत तो कर दे थोड़ी-सी।
यूं चुप ना रह ऐ बेखबर, शिकायत ही कर दे थोड़ी-सी।-
जागते रहे हम तारों के सहारे रात भर,
बादलों को ओढ़ सो गए वे ख़्वाब भर।-
ज़िन्दगी कम ना पड़ जाए हर बात समझने को,
वक़्त बेवक्त ही सही, आता है मगर ये कहने को।-
ज़र्रे-ज़र्रे में फ़ैल जाती है वो महक बन कर,
मोहब्बत मेरी बस उसे समझ नहीं आती।-
ना किसी की किताबों में, ना ही इबादत में शामिल हुआ मैं!
रफ़ाक़त में हुआ शामिल जब उस संग, तो कामिल हुआ मैं!-
किसी को उम्र भर भी देखूं तो जी ना भरे,
किसी के दीदार को यहां आंखे तरस जातीं।
किसी की चाहतें बेशुमार पर हम शुमार नहीं,
किसी की आदतें बन के भी हम रह ना सके।-