तेरे माथे के सिंदूर 🧡 से तेरी बदलती साड़ियों के रंग तक
रंगों से भरा है मेरा आशियां........
मै नहीं मानता साल में होली एक बार होती है ।
❤️🧡💛💚💙💜🖤-
दिन गुज़रा
शाम ढली
क्या रात भी यूं ही सिमट जाए
दिन की रोशनी में ना मिला जो
शायद रात के अंधेरे में मिल जाए
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तेरे हुस्न के कायल तो हम पहले से ही थे
बस बेशर्मी हमने नई-नई सीखी है
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दिन को रात और रात को दिन बना देते है
बस यूं ही दिन रात के सफर में सुकून की शामों को गंवा देते है
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वो मुस्कुरा के देखते है मुझे गुरूर से
मै मुस्कुरा के फर्ज अदा फर्मा देता हूं दूर से
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ना जाने क्या सोच के लोग ये कदम उठाते है
छोड़ के अपनों को तन्हाई को गले लगाते है
कुछ लड़खड़ाते है
संभालते है
रुक जाते है
कुछ बदनसीब होते है
बहुत दूर निकल जाते है ।
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विधाता का वरदान है
मनुष्यों पर एहसान है
ये धरती वायु जल और गगन
जिसमे फल फूल रहा है जीवन
विविधताओं को कर पल्लवित
परस्पर निर्भरता का पाठ सिखलती है
है नमन उस शक्ति को जो प्रकृति कहलाती है
इसके ही पालन पोषण से
यह वसुंधरा लहलहाती है
पंछी है चहकते ऋतुएं इठलाती है
है नमन उस शक्ति को जो प्रकृति कहलाती है
संपदा का दोहन कर पौरुष दिखलाता है
किराएदार के किरदार में खुद को स्वामी बताता है
पुनः संतुलन लाने को स्वयं आपदा बन जाती है
है नमन उस शक्ति को जो प्रकृति कहलाती है
- शूbh
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कुछ दिनों से हूं कैद की गुरूर सारा टूट गया
वो सड़के गलियों चौराहों का नज़ारा जो छूट गया
यारों से बात तो रोज़ होती है
मगर वो यारों का याराना छूट गया
तारीख रोज़ बदलता हूं उस तारीख के इंतजार में
बदलते बदलते तारीखें ज़माना बदल गया
भूल के कुदरत के नियम सभ्यताएं इतिहास हो गई
मानवता हुई कैद तो प्राकृति आजाद हो गई
- शुbh
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विपत्ति अयी जग डोल रहा
मनुष्य त्राहि - त्राहि बोल रहा
हो बड़े जो वीर तुम
किंचित तो धरो धीर तुम
जन स्वजन का करो ध्यान
समझो सुरक्षा के विधि - विधान
आयी विपदा को पहचानो
इसे देश-भक्ति का अवसर जानो
भय नहीं जागरूकता लाओ
जो हो यथार्थ वह बतलाओ
कर्म किसी के
भोगे दुनिया सारी
मूर्खता सिद्ध हुई सदैव प्रलयंकारी।
- Shubh
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संघर्ष में है जिन्दगी
की मेरा काम हो जाए
कुछ कर दिखाऊं ऐसा
की मेरा नाम हो जाए
कह के निकला हूं घर से
की जल्द ही आऊंगा
लौट भी जाऊ
बस कुछ इंतजाम हो जाए ।
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