मैं लिखता हूं जब मैं बेहत उदास हो जाता हूं।
मैं लिखता हूं जब खुद को तन्हा पाता हूं।
मैं लिखता हूं जब खुद से दुर जाना चाहता हूं।
मैं लिखता हूं जब खुद को भुल जाना चाहता हूं।
मैं लिखता हूं जब समझ नहीं पाता खुद को।
मैं लिखता हूं जब मुझसे मेरे हालात नहीं संभलते।
मैं लिखता हूं जब मुझसे मेरे जस्बात नहीं संभलते।
मैं लिखता हूं जब कुछ कैहना चाहता हूं पर कैह नहीं पाता,
सुनाना चाहता हूं पर आवाज नहीं होती,
सोना चाहता हूं पर नींद नहीं होती,
रोना चाहता हूं पर आंसू नहीं होती।
मैं लिखता हूं जब उलझ जाता हूं अपने ही एहसासों में,
तब सुलझा लेता हूं खुद को शब्दों को काजग पर उतार कर।
ना मै शायर हूं,
ना मेरा शायरी से कोई वास्ता है।
बस एक शौक बन गया है,
यादों को बयां करने का रास्ता है।
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