Shubham Singh Dohrey   (शुभम)
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Joined 31 May 2020


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Joined 31 May 2020
27 JUL 2021 AT 22:36

वह पढ़ी - लिखी कान्वेंट मे
सीखी सारी दुनियादारी
सफलता की सीढ़ी चढकर
देखी दुनिया सारी।

फिर आयी एक महामारी!
और खा गयी, देह की आक्सीजन सारी
सरकारों के चक्कर में पड़कर
फिरी भटकती मारी-मारी।

कहीं नहीं मिला सिलैंडर
कहीं थी बेडो की किल्लत
अब! अंतिम समय आ गया
सूख गयी, देह की प्राण-वायु सारी।

अब आन पड़ी अंतिम संस्कार पे!
कहीं जली चिताओं के जमघट में
या पड़ी रही किसी गंगा के तट पे
छप गये इश्तिहार, दुनिया में
धरी रह गयी तरक्की सारी।

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25 JAN 2021 AT 16:43

सालों से बंद हैं
आँखों में आंसू।
लोग अक्सर!
मुस्कराते चेहरों पर रूक जाते।

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17 SEP 2020 AT 19:49

न लेखक,
न कलाकार हूँ, मै!!
सच कहूं तो,
बेरोजगार हूँ मै...

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17 SEP 2020 AT 19:43

हम तो इस खेल में
खिलाड़ी बनने आये हैं
जिस दिन खेल से दिल भर जाएगा,
खेल छोड़ देंगे.

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4 JUL 2020 AT 10:03

दिल की उड़ाने झूठी है!

हर किसी पे आ जाता है
बड़ा नासमझ है! ये

मुस्कानें झूठी है!

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26 JUN 2020 AT 15:22

हूँ, तुम्हारा ही हिस्सा
चाहो तो प्यार कर लो

मुझ पर भी अधिकार लो...

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26 JUN 2020 AT 8:15

I understand,
Because
I read your eyes
Because
They are always talk with me.

-Shubham

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25 JUN 2020 AT 20:58

क्यूँकि


जो मिल जाये
वो भी कम होता है..

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25 JUN 2020 AT 17:39

वो दिया है
किसी की आस का
किसी के विश्वास का
जलता है!
ह्रदय में
नयन में
अंतर्मन में
वो दिया है
प्रेम का, कृष्ण का....

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25 JUN 2020 AT 14:27

भूल गये
वो नासमझी के दिन,
क्यूँ याद दिलाते हो...
बस, अब
जाने दो...

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