Shubham Singh   (Thakur_up50)
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सफ़र
Joined 24 January 2019


सफ़र
Joined 24 January 2019
18 MAY AT 0:35

जिन्हें लगता है खूबसूरत वो शहर जाते हैं 

हमारी मिल्कियत है गांव , सो घर जाते हैं


वो तोड़ लेते हैं फूलों को जिनका लहज़ा सख्त होता है 

हम गुजरते हैं बाग से तो गुंचे लिपट जाते है


सारे अदबी तरीक़े नागवार हैं जिस शख़्स को

साथ उसके लिए हम अपने आप से लड़ जाते हैं


लोग कहते हैं ये रस्ता कभी ख़त्म नहीं होता

और हम हैं कि उसी रस्ते से हर रोज़ गुज़र जाते हैं

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9 OCT 2023 AT 13:27

मैंने संभाल के रखें हैं वो सारे दिन
जिन्हें हमने गुज़ारे थे कभी साथ साथ
तुमने उतार दीं क्या ?
कोई गम नहीं !
मैंने पहन रखीं हैं वो सारी शामें
मैं झूमता हूं मौज में ओढ़ कर उनको ,
और उठा कर रख लिया करता हूं अपनी गोद में अक्सर ,
तुम्हें मालूम है वो पौधे अब पेड़ हो गए हैं
जिनके पास से गुज़रे थे हम कई रोज़ पहले
चलो चलते हैं फिर से वहीं उस पेड़ के नीचे
गिनेंगे उसपे पत्तियां कितनी लगीं है
क्या मौसम कुछ नहीं बिगाड़ पाया उसका
चलो ये भी पूछ लेंगे उससे ,
पूछ लेंगे उसी से की कैसे कोई खड़ा रहता है अरसों तक
ना कोई उफ , ना कोई हाय !
मुझे मालूम है वो क्या जवाब देगा
जानना चाहोगी तुम भी ?
वो जवाब देगा की मिट्टी ने पकड़ रखा है मेरी जड़ों को अंदर तक
कुछ ऐसे की झुकता तो हूं मगर
टूट के बिखरा नहीं अभी तक जमीं पर ,
डालियां कई सारी टूटी आंधियों में
मगर फिर से उग आईं फुनगियां नई नई ,
पूछना चाहोगी और कुछ तुम भी ?
या काफ़ी है पेड़ की थोड़ी बहुत ये धूप छांव ....

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10 OCT 2022 AT 13:15

तुम बदले नहीं , आज भी वही बात करते हो
हर लफ़्ज़ दिल से गुज़रे वही बात करते हो

ये छोटी छोटी बातें लिए फिरते रहते हो ज़माने में ,
मैंने तो सुना था तुम बहुत बड़ी बात करते हो

यूं जो कश्तियां बदलते हो सफ़र में और फिर
तुम्हें तिनके से भी दूर रहना है ,कैसी बात करते हो

मैं आज़ाद होकर भी मोहब्बत से जुदा नहीं हुआ
तुम इश्क में होकर भी ऐसी बात करते हो

ले देकर इक हमीं पर इल्ज़ाम ,
तुम तो और कुछ नहीं बस यही बात करते हो

Thakur_up50

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7 OCT 2022 AT 21:08

ढलती किसी शाम में जब मुस्कुराओगे तुम
यकीनन मेरी ग़ज़ल को याद आओगे तुम

अपने आप से निकल कर मिलूंगा ज़माने से ,
अपने आप में रहूंगा तो याद आओगे तुम

शायरों की ज़िद में समझौते नहीं होते मगर ,
समझौतों की ज़द में याद आओगे तुम

उजाला होगा तो दिखने लगेगा ज़माना ,
जब होगा अंधेरा तो याद आओगे तुम

चांद की तारीफ़ पर खुश होंगी सभी लैलाएं ,
करूंगा तंज़ चांद पर तो याद आओगे तुम

रात होगी तो भूल जाऊंगा सब कुछ ,
रात गुज़रेगी तो याद आओगे तुम

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7 OCT 2022 AT 11:08

पाक़ रखने को सूरत , नुक्ते का असर रक्खा
और शायर ने शायरी का हाल इस कदर रक्खा

तू मुस्कुराई तो मुक्तक में कई श्रृंगार गढ़े मैने ,
फिर तेरी बेरुखी पे तेरा नाम ग़ज़ल रक्खा

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5 OCT 2022 AT 19:50

खुशबू फैलाए सारे आम बैठा है
इक फ़ूल भंवरे की दुकान बैठा है

मेरे गले जो पड़ने से रहा ,
वो शख्स आज परेशान बैठा है

मेरे मतले में किसी और को पाकर
वो मेरी गज़ल पर निशाना तान बैठा है

मेरी नाराज़गी अब किसी से नहीं
मेरा साया मेरे दरमयान बैठा है

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10 SEP 2022 AT 10:31

नसीहत में क्या दोगे , मुझे कुछ तो दो
मैं सब खर्च कर आया , मुझे कुछ तो दो

आज पुराना इक शख्स मिला था मुझको
कहने लगा रब्त नया करना है, मुझे कुछ तो दो

वीरानिया ओढ़कर वो कोसने लगा किसी को
फिर बोला तुम्हें अपना बनाना है ,मुझे कुछ तो दो

उसका भरम था कि मैं बहुत देर से कहीं खड़ा हूं ,
मुझे मिला तो बोला , इसे तोड़ना है मुझे कुछ तो दो

आख़िर इक आईना देकर मैंने उससे कहा ,
देखो क्या कुछ हासिल है तुम्हें , मुझे कुछ तो दो

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5 APR 2022 AT 13:06

तुझे मालूम नहीं तेरा चाहने वाला क्या हो गया
इश्क में भटके हुए मुसाफिरों का रास्ता हो गया

बहुत याद करते हैं तुझे मेरे शहर के परिंदे ,
तुझे पता है तू हम दरख्तों का ख़ुदा हो गया

कमाल वो भी थे जो तेरी याद में मुरझा गए
कमाल मैं भी था जो तुझे सोचकर हरा हो गया

सुना है तू अपने चाहने वालों से फकत फ़ायदा देखता है
ये तो तेरे चाहने वालों के साथ सियासी मसअला हो गया

मैं आज तक ढल नहीं पाया लोगों के मुताबिक
तेरी तो आदत है तू रंग बदलते ही नया हो गया

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2 APR 2022 AT 18:42

तुम यकीनन कहीं मौजूद हो मेरे यकीन की तरह
जैसे , मेरी मांगी हुई दुआओं में आमीन की तरह

तुम - मैं और मेरे खुलूस की गहराई ,कभी ऐसा भी हो
वरना और होता ही क्या है मोहब्बत में इन तीन की तरह


नज़्म ( Caption me )....

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31 MAR 2022 AT 14:50

ऐसा भी है कोई जिसे तुमसे ऐतराज़ हो
अगर है कोई तो उसकी ख़ता मुआफ हो

तुम्हारे दिए हर ख़त को अपने पास रखलूं
और बाकी जो कुछ बचे वो सुपुर्द ए ख़ाक हो

मोहब्बत का मुआमला है तो जीत भी सकता हूं
गर मेरी पेशी के साथ तुम्हारी इक दर्खास्त हो

मसअला इसी बात का है तो कोई हर्ज़ नहीं
तुम्हारी इक मुस्कान पर मेरी सौ सौ हार हो

गज़ल सुना दूंगा तुम्हें अगर तुम सामने आओ
मगर शर्त है की ये किस्सा आज के आज हो

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