11 OCT 2017 AT 21:34

मुखरे पर धुल लगी माना, माथा फूटा माना लेकिन
गालों पर थप्पड़ खायें हैं, जबरा टूटा माना लेकिन
माना कि आतें ऐंठ गयीं, पसलियों से लहू निकलता है
घिस गया है कंकर में घुटना और मिर्च सरीखे जलता है
माना कि साँसें उखड़ रही, और धक्का लगता धड़कन से
लो मान लिया कि कांप गया है पूर्ण बदन अंतर्मन से
पर आँखों से अंगारे, मैं नथुनों से तूफाँ लाऊंगा
मैं गिर गिर कर भी धरती पर, हर बार खड़ा हो जाऊंगा
मुठ्ठी में भींच लिया तारा, तुम नगर में ढोल पिटा दो जी
कि अँधेरे हो लाख घने पर अँधेरे अनंत नहीं
गिर जाना मेरा अंत नहीं!

- Shubham Shyam