इस जीवन के इस डोर को पकड़े चला जा, जैसे हो अफसाना ना कर तू इंतजार किसी का तू खुद है अपना सहारा तू कर अंकित उस बांध को जहा तुझे है जाना पिघला दे तू उस जंजीर को जो पिघलते बन जाए खजाना इस शहर के भीड़–भाड़ से तुझे कहा है जाना? शांत बैठ और कर विचार हो सके तो मत ले ठिकाना
ए हस्ती कौन है तू? क्या तुझे जानता है जमाना बस तू लिख अपना परवाना इतिहास बताएगा क्या था वो ज़माना क्योंकि तेरा जन्म सिद्ध अधिकार ही हैं चलते चले जाना, चलते चले जाना..........