मुक़म्मल तबाही चाहता हु मै खुद की
ये दिखावा और दिखावे की जिंदगी मेरे बस की बात नही-
मैं हासिल हुई चीजो की कद्र भूल जाता हूं
तमाशा नही चाहता था इसलिए चुप रहा गया
वरना राज तो आपके भी मुक़म्मल मालूम है मूझे-
अब मुलाक़ात ना हो तो अच्छा है
तेरा गुरुर बना रहे यही अच्छा है
आमना सामना हो और बात बिगड़ जाये
इसलिए अब बात बे बात न हो तो है अच्छा है-
वों काजल बताती है जबकि मै कलंक था
उसके इश्क का मुरीद मै एक मलंग था
जैसे देख सरे बाजार मुँह फेर ले रही है वों आजकल
उसे कभी मेरे इश्क पर भी घमंड था-
तोहमत लग गयी मै बर्बाद होने वाला हु
किसी के मुहब्बत का तलबगार होने वाला हु
शायद अब मुक़म्मल एक को तरस जाऊ
कल रुकसत मेरा यार होने वाला है-
एक अरसा हुआ उससे बात नही हुई
चैन से सो सकू वों रात नही हुई
हा हो रही है मेरे शहर मे भी बूंदाबादी
रूह तलक भींग जाये अब वों बरसात नही होती-
कल उसकी शादी और आजाद हो जाऊंगा
वों तो सुहागन हो जायेगी और मै बर्बाद हो जाऊंगा-
किरदार पे किरदार जाया हो रहे बाबा
किस्मत मे कोई मालिक भी होगा या सब किरायेदार ही लिखें है-
उमरकैद सजा पा चुके बंदी माफिक है ज़िन्दगी
जाने क्यू अब आज़ादी आज़ादी सा सुकून नही देती-