मुकद्दर को भी बडे़ हल्के में लिया है लोगों ने यहाँ,
थकते पैर हैं और लकीरें हाथों की दिखाई जाती हैं...-
#Thís_IS_PhilósoPhical_Shayar💯✍...
"𝘌𝘪𝘵𝘩𝘦𝘳 𝘞𝘳𝘪�... read more
"अधूरी नहीं, इसे मुकम्मल ही समझों "
"ये मुस्कान किसी के मौजूदगी की मोहताज नहीं "-
"यूँ तरस कर जो मिलता हैं,
भले एक लम्हा तुझसे रुबरू होने का "...
"तेरे हर यादों की कुरबत से,
गुज़रने में सुकून बहोत हैं "...-
"महोब्बत-ए-दरिया जो तू उतरा ही हैं,
तो अश्क-ए-समंदरों से फिक्र कैसा? "...
'राबता ना पूछ खूद से तकलीफों का'
"पाया जो एक रोज़ तालिम रब से,
तो मलाल-ए-इश्क का फिर ज़िक्र कैसा? "...-
" मैं रेत हूँ, बदलता हूँ "
" कभी खुश्क, कभी नमी में ढलता हूँ "
वक्त के साए में, वजूद भी कुछ अलग हैं मेरा
लकीरों में समाता नहीं किसी के
इसलिए ख्वाहिशों की बंद मुठ्ठी में, मैं नीचे की ओर
फिसलता हूँ...
ठंड में समाकर खुदको, फिर धूप की उजली किरण में
उबलता हूँ
गहरी तपिश से मेरा राबता भी हैं कुछ गहरा सा;
तकलीफों की आग में जलकर ही तो,
मैं खुदको रौशनी में बदलता हूँ
आज हवा में हूँ, तो तुझसे मिलना मुमकिन हुआ हैं मेरा...
कल तेरे चेहरे को, छुने से पहले
मिट्टी बन जाऊ, इस बात से डरता हूँ....
" मैं रेत हूँ, बदलता हूँ "
" कभी खुश्क, कभी नमी में ढलता हूँ "...
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"Ibaadat-E-Ishq se kuch iss kadar door hone lga hun"...
"Rooh khud khafan odhne lagi h, Aur jismo se Rone lga hun"....
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"पूरी करके हसरतें उसने,
कुछ इस कदर खुद से अलग कर दिया"...
"खामोशीं भरी चीखें दी उसने मुझे,
और आशियाना मेरा अश्कों से भर दिया"...-
"गुनाह दफ़्न करके खुदमें,
एक हकीकत छुपा रहा हूँ"...
"कुरेद कर ज़ख्म खुद के,
फिर अश्क वही पन्नों पर बहा रहा हूँ"....-
"मुझे रास नहीं आती अब,
तन्हाई भी खयालों में"
"मैं तलबगार जो तेरी,
मौजूदगी का हुआ हूँ"....-
"बिखरा सा लगता हूँ,
कुछ यूहीं बेवजह आज कल"
"मैने औरों से सुना हैं,
तेरा तलबगार हो चुका हूँ मैं"....-