आँखों मे अपने ग़म लिए जा रहा हूँ।
यारों की महफ़िल का अदम लिए जा रहा हूँ।
वक़्त के दिये जो घावों को भर दें,
यादों का ऐसा मरहम लिए जा रहा हूँ।-
Love to write
Love to sing
कुछ अपने हैँ बेगाने से,
कुछ रिश्ते हैँ अनजाने से,
दिल मे छुपाये हम बैठे हैँ,
कुछ किस्से हैँ तराने से।— % &-
गणतंत्र मिला है जो सबको, आओ इसको हम ग्रंथ बनाये,
हर इंसान को जो दे समानता, आओ इसको हम सम्मान दिलाएं।
हमको दिए अधिकार जो इतने, उनको हम आधार बनाये,
अपने गणतंत्र की ताकत को, दुनिया मे सम्मान दिलाये।
जात-पात और ऊंच-नीच का आपस मे हम भेद मिटाये,
एक दूजे का साथ दे हम सब, साथ रहे और ध्येय बढ़ाये।
कृषि अगर धरती पे हो तो, आकाश में सुखोई हो,
सैनिक लड़े जो सीमा पर तो, माँ न घर पे रोई हो,
बुलेट ट्रेन दौरे धरती पर, मंगल पर मंगलयान ले जाये,
अपने गणतंत्र की ताकत को हम, दुनिया मे सम्मान दिलाये।
राजनीति में भेद-भाव का, कोई अंश न बच पाए,
शिक्षित हो हर युवा यहां का, विकास ही मुद्दा रह जाये,
कुशल हो कौशल भारत अपना,सारी दुनिया मे छा जाए,
अपने गणतंत्र की ताकत को हम, दुनिया मे सम्मान दिलाये।
आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।-
सारे गिले शिकवों को भुला देता है,
कोई जब मिले तो उसे अपना बना लेता है,
रूठा हुआ हो कितना भी कोई शख्स,
मान जाता है, जब कोई उसे गले लगा लेता है।-
लल्ला मेरे बड़े मन भाए
जन्म लिए कोठरी में औ घन-घोर वर्षा कराए,
लल्ला मेरे बड़े मन भाए।
पालना में ही पूतना के दिये प्राण पखेरू उड़ाए,
लल्ला मेरे बड़े मन भाए।
कोपित इंद्र भए तब तुम ही गोवर्धन पर्वत उठाये,
लल्ला मेरे बड़े मन भाए।
बड़े भए तो कंस मारकर जग को दियो हँसाए,
लल्ला मेरे बड़े मन भाए।
गीता का उपदेश दिए तुम धर्म को दियो जिताए,
लल्ला मेरे बड़े मन भाए।
हमारी भी इक अरज सुनो और हृदय से लियो लगाए,
लल्ला मेरे बड़े मन भाए।
-
जिंदगी से खुद ही लड़ता रहा हूँ,
मुझे न मुकद्दर से गिला है।
किस्मत भी खुद ये सोचती होगी,
कि खिलौना टक्कर का मिला है।-
"एक प्रदेश" को देश छोड़ दिया लाखों लाशें जलाने को,
अब बैठ सोच रहा है हाकिम, अपनी शक्ल दिखाने को।
-
क्या लिखे दर्द-ए-दिल की दास्ताँ अब हम,
वो चाहते हैं हम दर्द में ज़िन्दगी गुजार दें।-
कट रही है जिंदगी, जिये जा रहे हैं हम,
कभी उनकी, कभी औरों की सुनते सुनते।-
प्यार उससे करो जो प्यार तुमसे करे,
यूँही जाँ ठुकराने का क्या फायदा,
तेरे दिल मे जो है वो किसी और का,
बेवफा को चाहा ने से क्या फायदा।
तेरे दिल को जो पल-भर को चाहे नहीं,
तेरे लफ़्ज़ों को जो भी सजाये नहीं,
बेरुखी से जो रुख को मिलाये कभी,
ये मोहब्बत जताने का क्या कायदा।
अपनी नज़रो में जो तुमको पाए नहीं,
ख्वाब तेरे जो दिल मे जगाये नहीं,
सपने होते ही हैं टूटने के लिए,
बुलबुलों को फुलाने का क्या फायदा।
ख्वाब उसके जो फिर भी सजाते गए,
बुलबुलों को जो तुम फिर फुलाते गए,
शख्सियत को तुम अपनी मिटा बैठोगे,
यूँ ही खुद को भुलाने का क्या फायदा।
इतनी मुश्किल से तुझको तराशा गया,
उसके बाद ज़मीं पर उतारा गया,
तुम पड़े उसके चक्कर मे फिर भी अगर,
शुभ का यूँ समझाने का क्या फायदा।
प्यार उससे करो जो प्यार तुमसे करे,
यूँही जाँ ठुकराने का क्या फायदा।...-