Shubham Lucknawi  
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Joined 9 June 2020


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25 JUN 2022 AT 20:59

आओ सुलझा ले किसी रोज़ मुआमलात सारे।
मसले ज्यादा तूल पकड़ जाए तो हल नहीं होते।।

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24 JUN 2022 AT 20:48

बाज़ार-ए-सुख़न के दाम अच्छे हैं।
यहां आह भी वाह-वाह में बिकती है।।

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22 JUN 2022 AT 21:09

बदन को काटता है दुःख, मलाल नोचतें हैं।
ये इश्क-ए-दर्द भेड़िये हैं, और ये खाल नोचतें हैं।।

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21 JUN 2022 AT 19:45

हम अपनों से परखे गए हैं, गैरों की तरह।
हर कोई बदलता गया, हमें शहरों की तरह।।

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20 JUN 2022 AT 21:46

तेरी यादों के नशे में चूर हो रहा हूं।
लिखता हूं तुम्हें और मशहूर हो रहा हूं।।

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16 JUN 2022 AT 21:20

बहुत क़रीब से गुज़रे उनके, मग़र ख़बर ना हुई।
कि उजड़े शहर की दीवार में खज़ाना छुपा रखा था।।

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15 JUN 2022 AT 21:27

जिस को कहते हुए तकलीफ़ बहुत होती है।
"शुभम्" मेरे उस शे'र की तारीफ़ बहुत होती है।।

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14 JUN 2022 AT 20:42

एक रोज उसके ख्वाब मेरे नींद में आने से मुकर जायेंगे
बहुत दिन गुजरे बिन उसके, किसी दिन हम ही गुजर जायेंगे।।

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11 JUN 2022 AT 21:17

रात भी, नींद भी, कहानी भी।
हाए क्या चीज़ है जवानी भी।।

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10 JUN 2022 AT 21:38

मैं चाहता हूं जी लू उसको देख कर।
मगर मैं हूं कि उस पर मरता जा रहा हूं।।

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