SHUBHAM KESHRI   (शुभम् केशरी "शुभ")
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भंड काफिले में पलता हुआ,एक खतरनाक ख्वाब हूँ मैं !
Joined 16 December 2018


भंड काफिले में पलता हुआ,एक खतरनाक ख्वाब हूँ मैं !
Joined 16 December 2018
12 OCT 2022 AT 21:04

जहरीले लोग अमृत की तलाश में हैं,
निर्दयी लोग रहमत की तलाश में हैं,
निरर्थक लोग उन्नत की तलाश में हैं,
अधर्मी लोग जन्नत की तलाश में हैं।

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14 AUG 2022 AT 0:16

"असभ्य आदमी"
आदमी असहनीय असीमित अत्याचार करता हैं
बहुत बुरा, बैपरदा, बलपुरक बरताव करता हैं,
बेवक़्त, बेफ़िजूल, बदसूलुकी, बेकार बांणी बक्ता हैं,
तसव्वुर तलाशता नहीं हैं,
खामोशी खुद में कभी,
हरदम हरवक़्त शौर करता हैं,
काली कपटी कंप-कंपायमान वाणी रखता हैं,
श्रेष्ठ शक्ति शिवभवानी रूपी
निष्कलंक नारी पर ज़ोर भरता हैं,
आदमी असहनीय असीमित अत्याचार करता हैं !

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9 JUN 2022 AT 7:31

गोरों के विरुद्ध लड़ने वाले, दरिया में खानी की ख़ातिर,
तुम भिड़े भयंकर अकालों से, जीवन में पानी की ख़ातिरा
ओ :मुंडा ग़दर के शिलालेख, जोहार गान तुमसे बिरसा।
है उलगुलान तुमसे बिरसा, मिला मान तुमसे बिरसा।

धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा

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20 APR 2022 AT 21:44

भगवान की आस्था
व्यक्ति को गलत करने से रोकती है।

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26 FEB 2022 AT 16:46

After two long years of sorrow, misery, struggle, fear, masks, emptiness, hardships,
heartbreaks and millions and millions of deaths, at last
when we began to breathe the fresh air!
When we began to heal!
When we began to embrace humanity!
When we began to live in harmony!
When we are trying to rebuild our lives!
When we are trying so hard to forget the past! Now l'm smelling, explosives and searching for my mask just like in the past,
Now l'm hearing, people crying, sirens blowing in misery just like the last time,
fighting for their loved ones in the hospitals,
Now l'm seeing people lose everything they owned and running as refuges to the other
countries, the man-killing man without any purpose,
Now l'm feeling hatred in the air.
Has the pandemic came to the end?
Where are the important lessons we learnt from the past?
At least then humans worked so hard to save lives but
Now humans worlk so hard to kill themselves.
I came to think the past is far better than this.
I wish our world is still in the pandemic...at least we would have a love for humans.

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5 FEB 2022 AT 9:30

जय मां सरस्वती

शब्दों का अतुल भण्डार दो माँ,
हृदय को नये विचार दो माँ।
इतना मुझ पर उपकार करो माँ।
जीवन मेरा संवार दो माँ।
अनुभूतियों को साकार रूप दो माँ।
सृजन को व्यापक स्वरुप दो माँ।
श्वेत पृष्ठों को इंद्रधनुषी कर दूँ,
मेरे शब्दों को नये रंग दे दो माँ।
"शलभ" को नये आयाम दो माँ।
शब्दों का मुझे उपहार दो माँ।
कुछ ऐसा लिखे मेरी लेखनी,
पढ़कर सब निहाल हो जाएँ माँ।

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5 DEC 2021 AT 22:06

"असभ्य आदमी"

आदमी असहनीय असीमित अत्याचार करता हैं !
बहुत बुरा, बैपरदा, बलपुरक बरताव करता हैं,
बेवक़्त, बेफ़िज़ूल, बदसूलुकी, बेक़ार बांणी बक्ता हैं,
तसव्वुर तलाशता नहीं हैं,
ख़ामोशी खुद में कभी,
हरदम हरवक़्त शौर करता हैं,
काली कपटी कंप-कंपायमान वाणी रखता हैं,
श्रेष्ठ शक्ति शिवभवानी रूपी
निष्कलंक नारी पर ज़ोर भरता हैं,
आदमी असहनीय असीमित अत्याचार करता हैं !

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5 DEC 2021 AT 22:05

"असभ्य आदमी"

आदमी असहनीय असीमित अत्याचार करता हैं !
बहुत बुरा, बैपरदा, बलपुरक बरताव करता हैं,
बेवक़्त, बेफ़िज़ूल, बदसूलुकी, बेक़ार बांणी बक्ता हैं,
तसव्वुर तलाशता नहीं हैं,
ख़ामोशी खुद में कभी,
हरदम हरवक़्त शौर करता हैं,
काली कपटी कंप-कंपायमान वाणी रखता हैं,
श्रेष्ठ शक्ति शिवभवानी रूपी
निष्कलंक नारी पर ज़ोर भरता हैं,
आदमी असहनीय असीमित अत्याचार करता हैं !

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5 DEC 2021 AT 22:04

"असभ्य आदमी"

आदमी असहनीय असीमित अत्याचार करता हैं !
बहुत बुरा, बैपरदा, बलपुरक बरताव करता हैं,
बेवक़्त, बेफ़िज़ूल, बदसूलुकी, बेक़ार बांणी बक्ता हैं,
तसव्वुर तलाशता नहीं हैं,
ख़ामोशी खुद में कभी,
हरदम हरवक़्त शौर करता हैं,
काली कपटी कंप-कंपायमान वाणी रखता हैं,
श्रेष्ठ शक्ति शिवभवानी रूपी
निष्कलंक नारी पर ज़ोर भरता हैं,
आदमी असहनीय असीमित अत्याचार करता हैं !

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16 JUL 2021 AT 23:51

रात के सिलवटों में, सन सनाते सिलसिले
टूट कर पड़ा है कोई, और है कहीं पर दिल मिले
जान को है जूझती
कोई जान, जानवरों के बीच में
तो कहीं पर जान जन्म लेता, जगमगाते सीप में
रात है चरम पर अपने, और हम यहाँ जगे जगे
इश्क़ में नहीं किसी के, ख़ुद से हैं थके थके
बात बात में रात, की एक राज़ बता दूँ
मैं उज़ालों में रहता हूँ उलझा सा
पर अँधियारे का सखा हूँ मैं
मैं दूर कहीं किसी दरवाजे पर, ख़ुद को था तलाशता
"तू खुद को खुद में ही पायेगा"
यह वाक्य था आकाश का
तो चल पड़ा मैं उस चौखट से
इस चौखट की आस में
बहुत निभा ली यारी अंधेरे से
अब निभाउंगा प्रकाश से।
~शुभम केशरी

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