जीत अपनी जगह हार अपनी जगह ।
और मुहब्बत का संसार अपनी जगह।
मीडिया के समाचार अपनी जगह,
और सवेरे का अख़बार अपनी जगह।-
Admin of many fb pages
राम चले वनवास को छोड़के तख्तों ताज ।
कैकई मईया बोल उठी कुल की रख ली लाज ।
©शुभम कश्यप 'शुभम'-
ज़िद तो पूरी कर रहे हो ।
पर अधूरी कर रहे हो ।
एक अयोग्य पात्र की तुम,
जी हुज़ूरी कर रहे हो ।
©शुभम कश्यप
-
मेरा प्रिय है मेरा पर्याय
कितना दिलकश मिला है अध्याय
कितनी गुम्फित श्रृंखलाएं मिली
किंतु बिखरा है हर समुदाय
आम रिश्वत है दफ्तरों में अब
हर अदालत में हो रहा अन्याय
रात जीवन्त है कशा-कश में
दिन है हर इक शुभम मृत प्राय
©शुभम कश्यप-
अच्छे दिन जल्द ही आएंगे ये वादा करके ।
रहनुमा खुश हैं मिरे मुल्क का सौदा करके ।
आसमाँ सुर्ख है क्या क़त्ल हुआ सूरज का ?
ये ज़मी चीख उठी ज़ुल्म का चर्चा करके ।
काम मिलता नही महँगाई भी पहुंची अम्बर ,
रख दिया अक्ल को इफलास ने भैंसा करके ।
हमने पथ पथ प शुभम ग़म से निभाया रिश्ता ,
बेवफ़ाई ही मिली प्यार में शिकवा करके ।
©शुभम कश्यप 'शुभम '-
ग़ज़ल
सूर की अंजूमन से उल्फ़त है ।
हमको शेर-ओ-सुखन से उल्फ़त है ।
आओ पग- पग लगाएं पौधे हम,
लहलहाते चमन से उल्फ़त है ।
नाज़िशें हुस्न-ए- इल्तिफ़ात है वो ,
उनके कत्थई नयन से उल्फ़त है ।
उनकी हर इक अदा अज़ीज़ मुझे ,
उनको अपने ही पन से उल्फ़त है ।
दस्तखत कर दिए शुभम मैंने,
उनके हर इक वचन से उल्फ़त है ।
©शुभम कश्यप-
उलझने लाख है इक ख़ुशी लापता ।
किस कदर हो गयी ज़िन्दगी लापता ।
हर विगत मान्यता हो गयी लापता।
आदमी में हुआ आदमी लापता ।
लौट आये हैं खाली हनुमान जी ,
है पहाड़ों से संजी'वनी लापता ।
नफ़रतों के पुजारी बने हम शुभम ।
मन से शिक्षा हुई राम की लापता ।
©शुभम कश्यप
-
जलती सड़के जलता मानव आग उगलता जाल
खून में डूबा लगता है ये सन 21 का साल
मौत के साये रेंग रहे हैं सबकी आंखों में
लम्हा लम्हा टूट रहा है प्यार वफ़ा का जाल
©शुभम कश्यप-
अपने भारत का भी नक्शा देखिए ।
कितनी मैली है ये गंगा देखिए ।
यूं तो कहलाते हैं सब अपने मगर ,
कौन अपने काम आया देखिए ।
दूसरों की एबजोई छोड़कर,
आईने में अपना चेहरा देखिए ।
इस तरक्की के अनोखे दौर में,
हर कदम मिलता है धोखा देखिए ।
आजकल हर चीज़ महंगी है मगर ,
है लहू मानव का सस्ता देखिए
©शुभम कश्यप-
वृक्ष के सूखे पत्ते क्षण -क्षण देते हैं आवाज़ बहुत ।
सहरा-सहरा हम सुनते हैं सन्नाटों के साज़ बहुत ।
वक़्त के गहरे अंधियारे में बुद्धि के उजले मानस पर ,
हमने बदलती तस्वीरों के देखे हैं अंदाज़ बहुत ।
©शुभम कश्यप-