कितना जहीन बच्चा हुआ करता था कभी मैं, शुभम्
ये तो दिल की संगत में आ कर ,जहन खराब किए बैठा हूँ-
दिन तो कट जाता है लाइब्रेरी में किताबों तले
ये रात है कमबख्त जो गुजरने का नाम ही नहीं लेती
शुभम् अंजान-
वो लड़का बेवफ़ा है और सिगरेट भी पीता है
तुम कह रहे हो क़ातिल ने कत्ल किया मगर पहले खुद जहर खा लिया-
वो आदमी नाज़ुक ऐसा के फूल की छुअन से मुस्कुराए
पत्थर इतना के लाश के बगल में बैठ कर खाना खाए-
जिंद़गी मैं तुझसे मुतमईन नहीं हूं,इतना तो समझ
देख लेना इक रोज़ मैं मौत को गले लगे आकर उड़ जाऊंगा-
आंधियों का जुनून है दरख़्तों को तबाह करना
ये फूलों का मयार तय करेगा, गिरना है के खड़े रहना-
तवाज़ुन की बड़ी ज़रुरत है शुभम् जमाने को
गर हम बीमार न हो तो हकीम की दुकान बंद हो जाए
तवाज़ुन - balance-
देख लेना शुभम् ख़ुदा उसे माफ़ कर देगा इक रोज़
क्या हुआ,उसने मेरे ऊपर किसी और को तवज्जो दी-
यूं किनारे पर बैठ कर उंगली करने वालों, कुछ भी
दोस्त,तुम समन्दर से गहराई का पता पूछ रहे हो-
याद रखना सफ़र बहुत लम्बा है शुभम्
यूं ही कोई एक दो दिन में अर्जुन नहीं बना करते-