बस यु सुराही से ढक दिया है मटके को,
तेरे होठो ने जैसे मेरे हॉठ ढके थे कभी।।-
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बस यु सुराही से ढक दिया है मटके को,
तेरे होठो ने जैसे मेरे हॉठ ढके थे कभी।।-
दोस्तों की मुलाक़ात हो और ज़िक्र चाय का नहीं,
बहाने बता रहे है वादे याद भी नहीं।।-
मगर वस्ल को बिछाकर मोहब्बत नहीं होती
और होती भी हो तुमसे एसी अगर
हमसे तो एसी इनायत नहीं होगी-
प्यार को मालूम होंगी हदें But
इश्क़ doesn't know about boundaries-
मुझे किताबें पढ़ने का शौक नहीं मगर,
तुम्हारे बारे में कुछ लिखना ज़रूर हैं ।।-
मुख़्तलिफ़ हैं लोग महफ़िल में उनसे मगर
ना जाने क्यूँ चर्चे हमारे नाम से ही हवा लेते हैं।-
EK TARAF RAKHI DIN KI THAKAN PARESHANIYA HAMNE
AUR EK TARAF RAKHE GARDAN SE BAAL USNE
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