ताजमहल पर कब पर्दा लगा,चाँद ने कब पहना हिज़ाब है,
ख़ूबसूरत है तू क्यूँ छुपाती है, कि चमकना ही तेरी पहचान है,
क्या फ़िक्र तुझको ज़माने की, क्यूँ इन फतवों से डरती है,
तोड़ दे इन पुरानी जंजीरो को, आसमान में तेरी उड़ान है,,
आज कितना सुहाना मौसम है, ज़ुल्फों को अपनी बिखरने दे,
निकल बाहर अँधेरे से देख तेरे नूर से रौशन होता जहान है,,
माना आसान इतना है नही, मगर ये नामुमकिन भी तो नही,
शायद तू उड़ सकती है, बस अभी अपने परों से अनजान है,,
सब कुछ तो तेरे पास है, फिर भी तू इतनी क्यूँ उदास है,
नई पीढ़ी को तुझे जबाब देना है, ये वक्त तेरा इम्तेहान है,,
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अकेला इस क़दर हूँ कि गैरो को भी गले लगा लेता हूँ,
आँखों को ख़बर लगती नही ग़म दिल में छुपा लेता हूँ,,
तुम तो बड़ी बातूनी हो फिर मेरे आगे ये ख़ामोशी क्यूँ,
मैं तो ज्यादा बोलता नही फिर भी ग़ज़ले सुना लेता हूँ,,
तुम्हारी हर वक्त मौज़ूदगी अब जरूरी सी लगने लगी है,
जब तुम नही आती तुम्हारी यादों से काम चला लेता हूँ,,
अपनी ख़ातिर तो कभी कुछ मांगा ही नही मैंने रब से,
मगर तेरे लिए हाथ भी जोड़ूँ और सर भी झुका लेता हूँ,,
क्या करोगी उस दौलत का अगर मुझ-सा प्यार ना मिला,
मुस्कान तुम्हारी ख़र्च न होगी इतना तो मैं भी कमा लेता हूँ,-
ग़ज़लें सुन लेती है सारी,बस शेरों पे दाद नही देती,
कुछ बातों पे सिर्फ मुस्करा देती है जबाब नही देती,,
उससे पूछे कोई मैंने कितनी रातें बिन सोये गुजारीं हैं,
गणित में अच्छी है तो क्यूँ मेरी नींदों का हिसाब नही देती,
उसका अलग ही अंदाज है मुझको नशे में रखने का,
आँखों से पिलाती है कमबख़्त ज़ाम में शराब नही देती,,
ये तुम किस ज़माने की आशिक़ी में लगे हो 'मासूम लड़के'
मालूम नही अब लड़कियां तोहफ़े में ग़ुलाब नही लेतीं,,
उसको पाना चाहते हो तो कामयाब होना पड़ेगा 'शुभम'
ये दुनियां हारे हुए आशिक़ को कोई ख़िताब नही देती,,
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मेरी इस मुस्कान को हँसी में बदल जाओ ना,
मैं भी सोई नही तुम भी ऑनलाइन आओ ना,,
बहोत दिन हुए मैंने कुछ अच्छा सुना नही है,
शुभम अपनी कोई नई शायरी सुनाओ ना,,
खुद को खुद ही छेड़ती रहती हूँ मैं आईने के आगे,
आज ख्वाबों में आके तुम मुझको सताओ ना,,
देखो मैंने आज बहोत दिनों बाद गुलाबी सूट पहना है,
तुम भी वही नीली कमीज़ पहनकर आओ ना,,
ये मौसम यूँ तो बहोत सुहाना है मगर किस काम का,
सुनो अपने ठंडे हाथो से मेरे नर्म गाल छू जाओ ना,,
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तेरी जादूगरी आज कल मुझपर चलती नही,
नज़र उठती है तेरी ओर मगर बहकती नही,,
जाने किस-किस को गले लगा के आ रही हैं,
पहले की तरह अब तेरी ख़ुशबू महकती नही,,
बेकार की बहस में लगी हो तुम हार जाओगी,
इकतरफा मोहब्बत है ज्यादा दिन चलती नही,,
कभी तेरे छूने भर से दिन बन जाया करता था,
अब तुझको चूम लेने से भी बात बनती नही,,
देखो कितना वक्त बदला,देखो कितने हम बदले,
कैसे ये ज़िन्दगी बदल जाती है खबर लगती नही,,
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वादा करो के तुम आओगे मुझसे मिलने,
एक और वादा करो के दिन मुक्करर न होगा,
मैं हर रोज़ तुम्हारा इंतेज़ार करना चाहता हूँ,
अपनी रातों को अश्क़ों से भिगोना चाहता हूँ,
वादा करो के तुम अपनी क़समें याद रखोगे,
उनके पूरा होने का मेरा ये भरम काएम रखोगे,
वादा करो ज़िन्दगी में कोई मेरे अलावा न होगा,
हमसफर तो होगा मगर कोई हमनवां न होगा,,
वादा करो के तुम मेरे बिना कभी खुश ना रहोगे,
भरी महफ़िल में भी मेरी कमी महसूस करोगे,,
वादा करो मेरे दिए सब तोहफे सलामत रहेंगे,
मेरे दिल की तरह वो तुमपे मेरी अमानत रहेंगे,,
वादा करो तुम लौट आओगे मेरी मौत से पहले,
वादा करो तुम गले लगाओगे मेरी मौत से पहले,,-
एक हसीन सा ख्वाब हो तुम,
मेरे हर सवाल का जबाब हो तुम,,
जो एक बार चढ़े और कभी ना उतरे,
कुछ ऐसा नशा, ऐसी शराब हो तुम,,
दुनिया को एक पहेली लगती हो,
मेरे लिए तो खुली किताब हो तुम,,
तुमको सवारूँ मैं किसी माली सा,
मेरे बाग़ का ख़ूबसूरत गुलाब हो तुम,,
अगर तुम पूछो तुम कौन हो मेरी, फिर,
इसका कोई जबाब नहीं लाज़बाब हो तुम,,-
ये उम्र क्या यूँ ही ढल जाएगी,
मेरे हिस्से कि ख़ुशी कब आएगी,,
थक चुका मैं अब तो रहम कर,
ज़िन्दगी तू कितना आजमाएगी,,
हँस तो लिया हूँ तेरे साथ मगर,
इसके बाद अब उदासी छायेगी,,
यादों का बोझ कहाँ संभलता है,
तेरी याद आँखों से गिरा दी जाएगी,,
तूने जो प्यार से दो बात कर लीं है,
आज रात नींद गज़ब की आएगी,,-
वो गलियां, वो घर, वो शहर छोड़ आया हूँ,
बड़ी मुश्किल से यारो मैं ऋषिकेश आया हूं,,
सुकून कुछ इस कदर मिला है यहाँ आके मुझे,
यूँ मानो किसी लंबे सफर से लौटकर आया हूँ,,
तेरे लिए कभी-कभी एक चॉकलेट ले आता था,
आज कुछ फ़ूल ख़रीदकर गंगा में सिला आया हूं,,
तेरी गलियों में टहलकर अब थकान होने लगी थी,
देख आज मैं नीलकंठ से पैदल चलकर आया हूँ,,
बहोत फ़ीकी लगी तेरे शहर की रौनक उसके आगे,
बस अभी-अभी जानकी सेतु से गुज़र-कर आया हूँ,,
पार्क में तेरे साथ बैठे रहना अच्छा लगता था कभी,
आज की शाम अकेले साईं घाट पर बिताकर आया हूँ,,
यहाँ परमार्थ की आरती है, राम झूला की गर्म चाय भी,
यहाँ साधु रूप में भगवान है, माता रूप में गाय भी,
यहाँ मस्ती में झूमते जोगी हैं, आसन करते योगी हैं,
यहाँ झरनों में शोर है, गुफ़ाओ में शांति घनगोर है,
यहाँ रास्तों पे आराम है, गंगा घाट पे होती शाम हैं,
यहाँ कुंजापुरी का वास है, स्वयं भोलेनाथ का निवास है,,
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क्या कुछ बदला है हमारे दरमियां गर ये पूछना है तुम्हे तो सुनो,
पहले मेरा हर जबाब तुम थे अब हर किसी का सवाल बन चुके हो,
पहले सुबह का ख्याल तुम थे अब रातों का मलाल बन चुके हो,
चाहा था मैंने टूटकर तुमको और तुम बिखरा हुआ समझकर छोड़ गए,
मैं जुगनु की तरह रौशनी करता रहा तुम अंधेरे का हवाला देकर छोड़ गए,
वक़्त मुश्किल था काटना मुझको, कोई दुःख पूछने तक ना आया,
सब के सब तेरे ही दीवाने तो थे, कोई मेरे आँसू पोछने तक ना आया,,
मगर अब मैं तुम्हारे बिना भी खुश रह लेता हूं, सारे ग़म अकेले सह लेता हूँ,
रोता नही अब किसी के आगे, ख़ुद की लिखी ग़ज़ले भी खुद के आगे कह लेता हूँ,,-