You don't feed someone who already has a lot on their plate; they may eat, but they will never appreciate it; nevertheless, if you feed someone who is hungry, they will truly appreciate it; they will never complain about flavour or quantity, and you will receive a lovely smile and many blessingss. In the case of emotions, the same logic applies. You don't throw it away on people who don't value it.
— % &-
ताजमहल तो नहीं बना सकता
न तारों को तोड़ने की बात कर सकता हूँ
न तुम्हें रानी बनाने की हैसियत है
पर बरसात की शाम में एक चाय का कप जरूर
तुम्हारे हाथों में थमा सकता हूँ
थके हुई माथे की शिकन को हाथ फेरकर शायद
उड़ा सकता हूँ
रास्तों में काटें होंगे और कांटों में चुभन होगी,
काँटे तो जिंदगी का हिस्सा हैं,
उन्हें हटा तो नही सकता पर उनपर तुम्हारे साथ जरूर चल सकता हूँ,
धुंदले आसमान में जो तुम्हें तारे देखने का मन हो,
धुंद तो मेरे बस में नहीं पर मैं इंतजार जरूर कर सकता हूँ।
कितनी भी बेरंग हो दुनिया, तुम्हारी तस्वीरों से मैं जहाँ रंग सकता हूँ।
— % &-
तुम अगर इश्क़ करते हो तो
फिर नजरें उठाते कैसे हो !
जलेबी के शौकीन हो तुम
फीकी चाय पी कैसे जाते हो।
-
Where are the folks who want to read books, who recognise the scent of earth after a rain, who don't open readily and can't go back if they do? People are having a casual conversation, and discussing silly issues. Is this something we're too old for, or has this generation passed us by? People seem to be eager to be with someone, seems like they are afraid to be alone. I despise seeing so many people's faces. Emotions are dwindling at an alarming rate...
Shubham-
वो खाली कागजों पर एहसासों की स्याही और आंखों की कलम से लिखी बाते.....
आज लिखने वाले कुछ बाकी हैं पर उसको पढ़ने वाला कोई नहीं
लिखने वाले भी कुछ ऐसे लिखते हैं कि सामने वाला आसानी से समझ पाए, और समझ न पाए तो बातों ही बातों में समझा देते हैं।
पर वो खाली कागजों में भीनी सी खुशबू से एहसासों को समेटने की बातें कुछ और ही थी।
शुभम-
वो चलता था, वो चलता है और वो चलता रहेगा
पत्थरों की ठोकर खाकर वो न रुकेगा
वो चलता रहेगा
रास्तों में जो बिछा दो कांटें ,
कांटों को चप्पल बनाकर वो चलता रहेगा।
अग्नि जो लगा दो,वो भाप बन उड़ेगा
पर फिर भी वो चलेगा।
वृक्ष काट दो जो तुम पूरा, वो कोंपल बन फूटेगा
पर वो चलेगा।
तुम बुझा दो दिया आवेग से अपने
वो सूर्य बनकर कल फिर जगेगा।
गुस्साकर तुम रोकोगे वक़्त को घड़ी के अपने
पर वो तो अनवर्त समय है, वो कहाँ रुकेगा
वो तो चलता था,चलता है और चलता रहेगा।
शुभम
-
मानवता शर्मसार हो जाती है जब दिखाई देता है कोई बिना हवा के दम तोड़ता, याद रखिये इस छण को, और शर्म आनी चाहिए उनको जिनके आदर्श ये फिल्मी सितारे होते हैं, जो देश को गर्दिश में देख भाग जाते हैं, और हँसते हैं और विदेशों में समुंदर किनारे बैठ कर ट्वीट करते हैं RIP।
-
पुरखों की बोली भाषा
हिन्द का स्वाभिमान है,
जिसने दिलाई भारत को विश्व पटल पर पहचान
वह मातृभाषा हिंदी ,महान है।
****************
हिंदी मात्र एक भाषा नहीं
हिंदी एक एहसास है
हिंदी आत्मविश्वास है
मन में करुणा है हिंदी
तो रण में हुँकार है हिंदी
सब को मिलजुल कर रहने
का संदेश दे जो,हिन्द की आवाज है हिंदी।
शुभम चमोला-
कलम से लिखे जज्बातों की बात कुछ और ही है,
जब खुशबु का जिक्र हो तो कागज महकने लगते हैं, दर्द झलके तो आंखों से कागज भीग जाते हैं, खुशी में पन्ने पलटने लगते हैं, कागज और कलम का वो अनूठा संगम अब कम देखने को मिलता है, आज फोन से लिखते हैं, कानो में हैडफोन लगाए पढ़ते हैं, इसलिए लिखने वाले भी कुछ इसी तरह लिखते हैं।-
जिंदगी में अगर आपको बहुत बार प्रेम हुआ है
तो दरअसल आपको बहुत कम प्रेम हुआ है।-