क्या लिखूं तुझे?
तुझे सोचूं और फिर कुछ लिखूं,
चल तू ही बता जज़्बात लिखूं या हालात लिखूं...
तेरे इश्क को अपने संग लिख दूं,
या तुझसे जुड़ी हर चीज को बुनियाद लिख दूं...
पहले तुझे देखूं और फिर तेरी यादें लिखूं,
तेरी तारीफ करूं या तुझसे मिलने की कोई फरियाद लिखूं...
तेरे साथ अपने हर सफ़र को आबाद लिखूं,
या तनहाई में गुज़रे, वो हर पल को बर्बाद लिखूं...
तुझे दिन या रात का किस्सा लिखूं,
या, तुझे भी मेरा ही एक हिस्सा लिखूं ...
तुझे एक प्यारा सा एहसास लिखूं
या चल तू ही बता, आज फिर किस बात को खास लिखूं...-
Founder of "Manmeet mere" & "Examplus India"
मैं शब्दों का हूँ सौदागर, भावों को तौल रहा हूँ।
आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।।
छंद-अलंकारों की भाषा, न करूँ मंचों की आशा।
तन की बातें समझूँ मन से, अंतर्मन की परिभाषा।
मीठी यादें अपने भीतर, होले-से घोल रहा हूँ।
आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।।
जीवन-पथ पर चलता साथी, संग दिया ओ बाती।
वाणी मधुमय रस बरसाती, कंठ सदा ही मितभाषी ।
खट्टे-मीठे अनुभव के ही, फिर समय टटोल रहा हूँ।
आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।।
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मैं शब्दों का हूँ सौदागर, भावों को तौल रहा हूँ।
आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।।
छंद-अलंकारों की भाषा, न करूँ मंचों की आशा।
तन की बातें समझूँ मन से, अंतर्मन की परिभाषा।
मीठी यादें अपने भीतर, होले-से घोल रहा हूँ।
आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।।
जीवन-पथ पर चलता साथी, संग दिया ओ बाती।
वाणी मधुमय रस बरसाती, कंठ सदा ही मितभाषी ।-
सफ़र - शब्द से नि: शब्द
शब्दों से ही मैंने अनगिनत शब्द सीखे हैं।
शब्दों से ही मैंने निशब्द होना सीखा है।
शब्दों के इस जाल में मैंने
अब ठहर जाना सीखा है ।
ठहर जाना मैंने उस शब्द पर सीखा है
जिसका कोई तोड़ नहीं है।
वो है झूठ, ईश्वर, सच और आखिरी शब्द मौन।
इस झूठ से मौन तक के सफ़र में
मैंने ज़िंदगी से मरना और जीना दोनों सीखा है।
© All Rights Reserved-
जब मैंने प्रेम को लिखना शुरू किया तब,
मेरे अंतःकरण में तुम्हारी उपस्थिति उजागर थी
भाली भांति तुम्हारी भावनाओं में समायोजित होने लगा
लेकिन देखते ही देखते मेरी स्थिति धैर्य से विपरीत जाने लगी
तुम अब भी प्रेम हो तुम्हारी उपस्थिति प्रेम ही है मेरे लिए
तीव्र वेग से अब वेदनाएं भी छूती है तुम्हारी
कितने पवित्र हो तुम देहिक से कहीं ऊपर गढ़ता हूं तुम्हें
जरा सा भी मोह भरता है तो
खुद को अकेलेपन में धकेल देना चाहता हूं
पर तुम्हारे अंदर जो भावनाएं निहित है
उससे कभी भी मोह या स्वार्थ नहीं रखा मैंने
तुम भावनाओं के उजास जैसे हो
जिसे मैं प्रति पल अपने अंदर
समाहित कर लेना चाहता हूं।
हां तुम"💙"— % &-
दर्द है इतना दिल में पर मैं कहता नहीं
शिकवा है इतना पर शिकायत करता नहीं
कोई ऐसा शख्स नहीं इस जहां में मेरा
जो पूछ ले मुझसे हाल-ए-ख़बर मेरा
हर कोई मशरूफ़ है यहाँ अपनी ज़िंदगी में
इक तन्हा हूँ मैं अपनी ही सफ़र में
बहुत गहरी रात है फिर भी सोते नहीं हम
कहता नहीं कोई जाग क्यूँ रहे हो,सोते नहीं तुम
सपने अब देखता नहीं, क्यूंकि ये पल में टूटा करते हैं
पर सपने क्यूँ नहीं देखते तुम, ऐसा कोई पूछता ही नहीं
तलाशता हूँ मैं भी इक शख्स, इस फरेबी जहां में....
जो मुस्कुराते चेहरे को देख कह दे कि मुस्कुराते क्यूँ नहीं तुम।— % &-
तुमको भी 'जाना' हो तो
चले 'जाना' बिना
बताये हुए ,
हम 'दिल' के दरवाजे
'खोले' हुए थे और
'खोले' हुए है बिना
'पाबंदियां' लगाए हुए।
सब 'सितम' झेले हुए थे
और 'झेले' हुए है
'अकेले' आये थे और
'अकेले' हुए है बिना
'आस' लगाए हुए।
तुमको भी 'जाना' हो तो
चले 'जाना' बिना
बताये हुए।...... — % &-
कुछ रिश्ते अपने वजूद के लिए नाम नहीं ढूंढते ,,
वे छोड़ देते हैं,.…
अपने हाथों की लकीरों की छाप दूसरे की हथेली में!!— % &-
बहुत खलती है मुझे वो बात
जब दिन, हफ्ते, महीनों बाद
खुद से ही किये वादे को तोड़ कर
पूछ लेता हूँ तेरी ख़ैरियत
बे ढंग सा कोई जवाब दे कर
"तुम कैसे हो" का तक़ल्लुफ़
जब तुम करती हो
तब सब बातें बेमानी लगती हैं
तेरी बेख्याली रंज करती है
वो बात मुझे बहुत खलती है ।
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