कुछ नज़दीकियां ज़ख्मों से परे हैं।
कुछ जैसे बेताबियों से घिरे हैं।
दूरियां जो मिटा ना पाए दर्द,
ऐसी हैं ये नज़दीकी।
बिन कहे बता दे दास्तां दिलो की,
ऐसी हैं ये आशिक़ी।- समर्थ
17 JAN 2020 AT 15:56
कुछ नज़दीकियां ज़ख्मों से परे हैं।
कुछ जैसे बेताबियों से घिरे हैं।
दूरियां जो मिटा ना पाए दर्द,
ऐसी हैं ये नज़दीकी।
बिन कहे बता दे दास्तां दिलो की,
ऐसी हैं ये आशिक़ी।- समर्थ