ऐसी निगाहों से न देखो हमारे रिश्ते को दुनियावालों
जब भी मिला है वो हमसे, बस उसने माथा चूमा हैं-
उसने पूछा सब खैरियत
मैंने कहा सब खैरियत
उसने समझा सब खैरियत
पर भी था क्या सब खैरियत
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यूँ तो मेरे दोस्त कईं पर तु कुछ खास हैं
तु हो ना हो मेरे पास पर तेरा एहसास हैं
ये लोग, उनके ताने, ये दुनियादारी इसकी तु सोच
अपनी यारी छोड़ मरे लिए तो सब बकवास हैं-
वो पेहली चाय...टपरी पे...आज भी याद है
क्लास का वो...लास्ट बेंच आज भी याद है
फिर कितने आये कितने गए कितने रूठे कितने छूटे
पर कॉलेज के वो चार यार आज भी याद है-
वफ़ा, इश्क़ सब किस्मत का खेल हैं जनाब
नहीं तो क्यूँ माहिर, नौसिखियों से मात खाते
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कुछ भी तो पहले जैसा नहीं रहा ना तुम ना मेरी आदतें
अब हम सुबह सबसे पहले अपना तकिया निचोड़ते है-
अजीब परिंदे है जो मंज़िल की ओर उड़ते हैं
उनकी रातों में नींद नहीं बस ख्वाब रहते हैं
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किसी की तरफदारी करता है, किसी की तरफ देखता तक नहीं
ये मुकद्दर है मियां यूँही हर किसी के इशारों पर नाचता नहीं-
शीशे सा टूट कर बिख़र जाए या पत्थर सा मुस्तक़िल मिज़ाज़ हो जाए
कहने को तो दो रास्ते हैं दिल के पास पर यहाँ दिल सा कोई मजबूर नहीं
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उसके काँधे का वो शरारती तील हमें बड़ा चीढाता हैं
उसकी कुर्बत और हमारे दरमियाँ फासले दिखाता हैं-