Shubha Singh   (Shubha)
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Joined 30 January 2018


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Joined 30 January 2018
2 MAY 2020 AT 22:24

गुलशन-ए-हसरत को बंजर-ए-अश्क़ में तब्दील कर दे,
हर पहर ख़्वाइशों का सौदा करे ज़िन्दगी वो कारोबार है।
ओझल हो गयी हूँ कहीं न जाने कहाँ ज़माने कि इस धुंध में,
तलाशती हूँ खुदको ही हर तरफ अब मुझे मेरी ही दरकार है।

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18 JAN 2019 AT 13:52

शब के गहरे सन्नाटे में देखो कहीं लहू आवाज़ दे रहा है शायद..
तन्हाई के पहलु में कोई ज़ख़्म अनकही सी दास्तान कह रहा है..

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17 OCT 2018 AT 19:09

उदासी चीख- चीख के मायूस अश्क़ों से कुछ कह जाती है..
बयां क्या करे हर मलाल खामोशी से ये रूह सह जाती है..
जल जाते हैं वरक़ खुशियों के ज़िन्दगी की किताब से....
आखिर में इन बदनसीब हाथों में फ़क़त राख ही रह जाती है..

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3 SEP 2018 AT 10:53

अश्क़ों का मातम होता रहा अरमानों के जनाज़े उठते रहे कब्रिस्तान-ए-दिल में,
ख़्वाबों की कब्र बनाकर हम नसीब से मिली जागीर-ए-दर्द को आबाद करते रहे।

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7 AUG 2018 AT 13:42

अल्फ़ाज़ सिसकते रहे, अज़ाब में जज़्बात दम तोड़ रहे थे कागज़ों पर..
कफ़न-ए-स्याह में लिपटे हालातों को लोगों ने हुनर के ताबूत में दफना दिया..

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23 JUL 2018 AT 12:09

ख़्वाइशों का सौदा हुआ,हसरतें हुई नीलाम, हुआ रुस्वा हर ख़्वाब,
बेख़बर थे हम की फक़त मुस्कुराने का कर्ज़ यूँ दराज़ भी होता है।

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12 JUL 2018 AT 11:14

साज़िश-ए-वक़्त है सब यूँ बेसबब ख़ामोश नहीं रहता है कोई,
अल्फ़ाज़ ज़ब्त कर ज़ुबान वालों को भी बेज़ुबान कर जाती है।

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2 JUL 2018 AT 11:57

हर सितम बर्दाश्त कर फक़त उन्ही की फ़िक्र करते हैं..
सज़ा न मिल जाये उन्हें इसी ख़याल से बेहद डरते हैं।
उनके ही दिये जख्मों के बहते खून को स्याही बनाकर..
रोज उनके गुनाहों का माफ़ीनामा ख़ुदा को लिखते हैं।

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26 JUN 2018 AT 22:42

The day was as hot as the sun..
She heard a knock at the door..
And she discovered..
An old man whose clothes were drowned with perspiration was begging her for water..
Later.. She appeared with a glass of water..
And found
The old man was fainted on that blistered street..
( The reason for her lateness was that.. she wasted her 10-15 min. in deciding the glass and bottle)

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23 JUN 2018 AT 13:19

गहरे अंधेरे में तन्हा छोड़ गए वो मेरी चीखती रूह को,
आवाज़ मेरी सांसों की ही मुझे ख़ौफ़ज़दा कर रही है।

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