डूबते वक़्त हम मशक्क़त कर रहे थे खुद को ज़िंदा रखने की,उनकी ख़ातिर
देखा तो वो हमारे हाल पर साहिल पे खड़े मुस्कुरा रहे थे, हमने डूबना बेहतर समझा..
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गुलशन-ए-हसरत को बंजर-ए-अश्क़ में तब्दील कर दे,
हर पहर ख़्वाइशों का सौदा करे ज़िन्दगी वो कारोबार है।
ओझल हो गयी हूँ कहीं न जाने कहाँ ज़माने कि इस धुंध में,
तलाशती हूँ खुदको ही हर तरफ अब मुझे मेरी ही दरकार है।-
शब के गहरे सन्नाटे में देखो कहीं लहू आवाज़ दे रहा है शायद..
तन्हाई के पहलु में कोई ज़ख़्म अनकही सी दास्तान कह रहा है..-
उदासी चीख- चीख के मायूस अश्क़ों से कुछ कह जाती है..
बयां क्या करे हर मलाल खामोशी से ये रूह सह जाती है..
जल जाते हैं वरक़ खुशियों के ज़िन्दगी की किताब से....
आखिर में इन बदनसीब हाथों में फ़क़त राख ही रह जाती है..-
अश्क़ों का मातम होता रहा अरमानों के जनाज़े उठते रहे कब्रिस्तान-ए-दिल में,
ख़्वाबों की कब्र बनाकर हम नसीब से मिली जागीर-ए-दर्द को आबाद करते रहे।-
अल्फ़ाज़ सिसकते रहे, अज़ाब में जज़्बात दम तोड़ रहे थे कागज़ों पर..
कफ़न-ए-स्याह में लिपटे हालातों को लोगों ने हुनर के ताबूत में दफना दिया..-
ख़्वाइशों का सौदा हुआ,हसरतें हुई नीलाम, हुआ रुस्वा हर ख़्वाब,
बेख़बर थे हम की फक़त मुस्कुराने का कर्ज़ यूँ दराज़ भी होता है।-
साज़िश-ए-वक़्त है सब यूँ बेसबब ख़ामोश नहीं रहता है कोई,
अल्फ़ाज़ ज़ब्त कर ज़ुबान वालों को भी बेज़ुबान कर जाती है।-
हर सितम बर्दाश्त कर फक़त उन्ही की फ़िक्र करते हैं..
सज़ा न मिल जाये उन्हें इसी ख़याल से बेहद डरते हैं।
उनके ही दिये जख्मों के बहते खून को स्याही बनाकर..
रोज उनके गुनाहों का माफ़ीनामा ख़ुदा को लिखते हैं।-
The day was as hot as the sun..
She heard a knock at the door..
And she discovered..
An old man whose clothes were drowned with perspiration was begging her for water..
Later.. She appeared with a glass of water..
And found
The old man was fainted on that blistered street..
( The reason for her lateness was that.. she wasted her 10-15 min. in deciding the glass and bottle)-