और मैंने देखा कि yourquote वालों ने जो महफिल लगाई थी, वो खुद ही उजाड़ दी। सब तितिर बितिर होकर जाने कहां गए! इन्होंने कहा कि ये कॉफी शॉप बंद होने वाली है, आप लोग ना आया करें। ज्यादातर लोग उधारी की चाय कॉफी पीते हो, खर्चा चल नहीं पा रहा। लगा था कि सब फर्नीचर वगैरह बिकने को था और शटर बस गिरने को है।
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Hybrid of Narcissism and Selflessness!
मैं बताना चाहती हूँ, जो पापा नहीं बता रहे थे.... ईश्वर की असीम अनुकंपा से (मैंने सुना है कि सब लोग ऐसे ही कहते हैं) और अपने पापा-मम्मी की अच्छी किस्मत से मैं आ गयी हूँ इनके जीवन में खुशियाँ भरने (और हुड़दंग करने).. योर कोट के सभी चाचा-ताऊ लोगों को, सभी बुआओं, मौसियों और दीदियों को परनाम पहुंचे🙏.. मैं भी अच्छी श्रोता हूँ और मुझे बातें सुनना पसंद हैं.. मैं टकटकी लगाए सुनती हूँ सब बातें.. मेडिकल साइंस वाले कहेंगे कि मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा होगा, लेकिन क्या पता मैं होशियार होऊं😅.. मैं अपने पापा-मम्मी की आवाज़ तो जरूर पहचानती हूँ.. मैं पिछले 11-12 दिनों से सुन रही हूँ कि पापा जाने कौन कौन सी कविताएं सुना रहे मुझे😄.. धीरे-धीरे आप सब का लिखा भी पक्का सुनवाएँगे। इसलिए आप लोग यूं ही लिखते चलिए।
मैं अभी तो इस दुनिया में इस नन्हे से अवतार में एडजस्ट कर रही हूँ (आप सब ने भी कभी किया ही होगा)... अभी फोटोथेरेपी करवा के आयी हूँ तो जरा टैनिंग हो गयी है, इसलिए मुंह दिखाई नहीं करूंगी। फिर मिलूंगी...😃
पापा के घर में मेरे नाम के लिए बहुत डिबेट चल रही है इतने दिनों से.. मैं सुनती हूँ लेकिन अभी बता नहीं पाती कि कौन सा नाम मुझे पसंद है। आप लोग भी कुछ हेल्प करिए ना इनकी।🙏
- आपकी शुभकामनाओं के इंतजार में, मैं छुटकी (नाम तो कुछ फाइनल ही नहीं हुआ अभी😏)-
जब मैं पहली बार घर से इंजीनियरिंग कॉलेज की ओर निकला था तो एक बात रह-रह कर कचोट रही थी- अब घर वापसी नहीं होगी। घर लौटना होगा, लेकिन वो स्थायी पता टाइप ही रहेगा आई कार्ड, पैन, पासपोर्ट वगैरह के लिए.. क्योंकि वो जो निकलना था ना घर से, वो हमेशा के लिए निकलना था.. एक कभी न खत्म होने वाली दौड़.. एक बहुत बड़ी मैराथन जिसमें आप दौड़ते हुए उस शुरुआती पॉइंट पर आते भी हो तो ठहर नहीं पाते... इसीलिए वो फर्स्ट सेमेस्टर टफ था.. क्योंकि पता था कि ये अहसास मन की कमजोरी भर नहीं था, जीवन की खठमिट्ठी सच्चाई थी। बस फिर घर से दूर ही जाते रहे, धीरे-धीरे...
दूर जाना ज्यादातर नियति है। आपके दूर जाते जाने में ही प्रायः माता-पिता का सुख और संतोष है, साथ ही उनके प्रयासों की सफलता। बस बात ये है कि कितना दूर चले जाते हो आप.. उस गांव-शहर या अपनी सबसे प्रिय याद से..
हॉटस्टार पर "घर वापसी" देखते हुए... पोस्ट बहुत लंबा हो सकता है, लेकिन वो अपने को दुहराना ही होगा।
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आज दिन में किसी ने एक न्यूज आर्टिकल शेयर किया- NTPC के एक इंजीनियर मृत पाए गए। पुलिस को प्रथमदृष्टया आत्महत्या का केस लग रहा है। फिर व्हाट्सएप ग्रुप्स पर चर्चा हुई। ऑफिस के क्यूबिकल्स में चर्चा हुई.. क्यों, कहाँ, कैसे वगैरह.. कुछ हमारी जैसी परिस्थितियों वाले की मौत की खबर थी ना.. कौतूहल वाजिब था.. बाद में पता चला कि हमारे कॉलेज के ही पढ़े हुए थे (हम लोगों से सालों पहले)... NTPC वाले कॉलेज के दोस्त जानते थे उन्हें। जैसा जानते थे, उस तस्वीर और व्यक्तित्व में हँसमुख जीव थे वे.. फिर तस्वीर बदलती जाती है धीरे-धीरे या अचानक बदल जाती है?
(अगर आत्महत्या ही मान कर चलें तो).. काम के बोझ और उसके तनाव से खुदकुशी जैसा कदम कतई तार्किक नहीं लगता। छोटा सा, खुशहाल परिवार यूं बिलखता छोड़ जाना, जब पैसा और स्वास्थ्य वगैरह कोई चुनौती ना हो.. तार्किक तो नहीं है। लेकिन फिर ज़िंदगी तर्क-वितर्क में उलझी भले रहे, तार्किक तौर पर बढ़ती तो नहीं है.. वो "आसान रास्ता" चुनने का साहस या दुस्साहस इतनी आसानी से तो नहीं आता होगा।
चाहे आवेग में लिया गया निर्णय हो या बस बोझिल या कठिन हो चुकी ज़िंदगी से भागने को "अंतिम विकल्प" मान कर उठा कदम.. जो चला जाता है, उसका तो कुछ नहीं; जिनके बीच से वो जाता है, उन्हें ये खयाल कब तक कचोटता होगा.. कि मैंने नहीं देखा उसे उस गर्त में गिरते.. या देखा तो था, पर मैं व्यस्त था, औरों की तरह-
जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं प्रेरणाकृति को!💐🎂
जलवा बना रहे.. यूं ही कलम (कीबोर्ड/टच पैड) से एक सुंदर सी दुनिया रचती चलो.. चाहने वालों की संख्या में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि हो.. और क्या चाहिए जीवन में!!...
तुमसे जुड़ना, तुम्हें जानना (और तुमसे फॉलो बैक करवाना😜) काफी सुखद रहा है, दार्शनिक कवयित्री..
जो-जो भी गानों के बोल यहां भरवाने हैं, भरवा लेंगे गीतांजलि से😅...
बाकी तो तुम्हें सब पता है। क्या ही लिखूं!
यूँ ही जिंदादिल रहो और अपनी ज़िंदगी को उसके पोटेंशियल भर जियो!🤗-
जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं चीकू!!💐🎂
खुश रहो, मस्त रहो, व्यस्त रहो।🙌-
कविता लिखना कम से कम दो तरह का होता होगा.. एक वे लोग हैं जो बोलना/सोचना शुरू करते हैं, तो अपने आप कविता बनने लगती है.. बहने लगती है.. फिर फर्क नहीं पड़ता कि उन्होंने जाने कब से कलम टांग रखी हो, कीबोर्ड ढक दिया हो, सब लिखने वाले एप्पलीकेशन बंद कर दिए हों.. जब भी लिखेंगे कुछ बेहतरीन बन पड़ेगा..
और दूसरी तरह के लोग?😅... एक बार छूट गया तो सारा नाता टूट गया.. कुछ नहीं बनेगा और बनेगा तो ऐसा कि खुद भी ना पढ़ा जाए दुबारा.. पढ़ गए हिम्मत करके तो सुनने वाला (यहां तक कि इंटरव्यू पैनल में बैठा) शख्स क्लीशे कह जाएगा...
हम ना लिखब कविता.. हम लिखिन ना पाऊब.. एसे अच्छा तो सोइन जावा जाए😴-