Shruti Tripathi  
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Joined 3 May 2017


Joined 3 May 2017
11 NOV 2023 AT 1:07

जब सांसें हो दांव पर, तुम दांव ऐसा फेंकते हो,
कभी odd-even, तो कभी artificial rain से खेलते हो।

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26 JUL 2021 AT 23:36

परिंदों की पहचान, हौसलों की उड़ान से होती है,
गिरे ज़मीन पर, नज़र फिर भी आसमान मे होती है।।

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25 JUL 2021 AT 10:11

तू डर नहीं, और कर अभी,
है हारना मगर नही।

ठोकरों की चोट से तू गिर अभी, और उठ अभी,
है हारना मगर नही।

है इम्तिहान तेरे सब्र का, तू सोच ले यही अभी,
है हारना मगर नही
है हारना मगर नही।।

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4 JUL 2021 AT 2:10

'कागज़-कलम की मुलाक़ात'

कैसे याद किया इतने दिनों बाद, पूछ बैठा कागज़ कलम से ये बात,
यूंही तो नहीं किया होगा याद, ख़ास रही होगी कोई तो बात।

शायद मिले न हो कभी जज़्बातों को शब्द, और कभी शब्दों को जज़्बात,
खैर जो भी हो, है रिश्ता अपना ये ख़ास।

खैरियत का ऐहसास हो जाता है, कोई जब लिख कर जाता है,
आए हो तो ऐसे लौट न जाना, किस्सा एक लिख कर ही जाना।




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9 JUL 2020 AT 0:03

ज़ुबां-ए-जंग में कौन हार और कौन जीत पायेगा,
गिराकर नीचे तुझे वो क्या ही पा पायेगा,
सब्र कर तू भी ज़रा, उसे वक्त ही समझायेगा।

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28 FEB 2020 AT 20:09

कि फेंक के ‌पत्थर तुम जो चल दिए
शब्दों के बाण से रिश्ते कुचल दिए,
अब न देखो हैरियत से यूं मुझे
कि तुम वहीं और हम यहीं रह गए।

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25 FEB 2020 AT 19:14

'ज़माना' एक वो कीड़ा है,
जो साफ लकड़ी को भी,
खोखला करने में लग जाता है।

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16 FEB 2020 AT 14:41

ये दिल का कारोबार है जनाब,
यहां नफा-नुकसान का हिसाब नहीं होता।

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30 JAN 2020 AT 19:15

उड़े हवा मे, तो आंख मे चुभती है,
बारिश मे भीगे, तो वही महकती है।

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27 JAN 2020 AT 19:27

तेरा हाथ मेरे हाथों के बीच इस कदर सिमट आया,
कि अब लकीरों का भी फर्क न रहा।

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