कलम चलने लगती है खुदबखुद .....
मन मे ख्यालों के भाड़ से,
समझती हूं मैं खुद को ही आजकल ,
कलम की लिखावट के सार से।-
Wish me 31 October
किसी चीज की अपूर्णता को
कितनी बार दोहराता है ,
परिपूर्णता के बखान के प्रयास में
अधूरा क्यों रह जाता है?-
घर वालो से बगावत कर
एक दिन इसे घर में लाना
धीरे धीरे सबके दिलो मे जगह बनाना
बात बात में नखरे दिखाना
जब तन्हा चुप रहूं मैं कभी तो
मुझसे मेरा हाल पूछने आना
गलती पर थोड़ा मार और डांट खाना
खुश होने पर इसका इतराना
घरवालों से भी अपनी मन की कराना
जिसने खुशियों से पूरा किया हमारी दुनिया
खेलने के लिए इसके साथ चाही बहाना
वो खाना भी खाता अपनी मनमानी
इसका नाम Bingo है सबको बतलाना!!
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सबको जिंदगी में
कुछ तो बेबसी है!
हर किसी की ज़िंदगी
कही ना कही फसी हैं!!-
अभी तो मै जीवन के
छोटे छोटे अनुभव बटोर रहीं हूं,
बड़ी बड़ी कविताएं
आती नही मेरे जेब में!!
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अभी तो महज सफर की शुरुआत हुई थी
अब तो आसमां को छुना बाकी था
अभी तो किनारे से शुरुआत हुई थी
पूरा समुंदर लांघना बाकी था-
परिंदों से कह दो झूम ले ये सारा जहाँ,
वरना पिंजरा खुलते ही इंसान फिर
फड़ फड़ाएगा.....!!-
लड़कियों को भी होती है,
उसकी आन बान शान प्यारी!
दूसरों के लिए जी के,
गुजारती है वो अपनी उम्र सारी!!
पता नहीं क्यों सब आस है करते,
लड़कों के पैदा होने की!
लड़की मिट्टी की नहीं, बल्कि
बनी होती है, सोने की...!!
खुशी सबको दे कर चेहरे पर..
छुप कर वो रोती है!
बेटी बाप पर बोझ नहीं
बल्कि घर की लक्ष्मी होती है!!
क्यों देखते हैं सब राह....
कब बड़ी होगी वो!
पूरे करने दो उसे सपने अपने
विवाह के लिए तो पूरी उम्र पड़ी है....!!
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