shruti singh   (श्रुति 🥀)
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A little Cute World💜
Joined 21 February 2019


A little Cute World💜
Joined 21 February 2019
10 MAY 2022 AT 1:56

कभी कभी किसी तस्वीर को साफ साफ देखने के लिए उसे नज़रो से दूर करके देखना पड़ता हैं। पास से देखने पर अक्सर तस्वीर धुंधला जाती है l
कई बार ज़िन्दगी में लोगो से दूरी ज़रूरी होती हैं l उन्हें समझने के लिए एक दूसरे नज़रिये और दिशा से सोचने, देखने की जरूरत होती है, कुछ वक्त की जरूरत होती है।
पास रहकर अक्सर हम उनके बहुत से पहलुओं से अनजान रह जाते हैं और उस तस्वीर के खूबसूरत रंग भी हमें धब्बे दिखाई पड़ने लगते है ।

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7 MAY 2022 AT 2:20

मेरा होना बस तुझ तक है,
तू दिखे ना दिखे,
सोच तुझ तक है ..
हर ख्याल तुझ तक है,
मेरे सुबह-शाम आगाज़ तुझ तक है,
मेरे टूटे-बिखरे, पुराने जैसे भी है,
एहसास ..जज़्बात तुझ तक है,

वो जो कभी पंख लगे मुझे ,
मेरी हर उड़ान तुझ तक है।

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25 APR 2022 AT 13:36

सबकुछ कहां कह पाते हैं हम भला,
कुछ तो रह ही जाता है खुद मे कुंडी लगा।

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2 APR 2022 AT 22:45

जब घर में कभी
उस एक छोटी सी बात पर रोना आया,
उसने बहाने से उन हिस्सों को भी रोया,
जिन पर ये दुनिया सवाल उठाती।


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2 APR 2022 AT 20:13

उसे आदत हो गयी हैं मेरे मीठे स्वभाव की,

मेरी जरा सी बेरुखी उसे उसपर ज़ुल्म लगती है।

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2 APR 2022 AT 12:06

जब तुम फ़ोन पर लौट आते.....


(अनुशीर्षक में)

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2 APR 2022 AT 3:49

जब तुम फोन रख देते...


(अनुशीर्षक में)

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30 MAR 2022 AT 16:45


बातों से लगी ठेस पर पिता रोते नहीं,
उनकी बस आँखें झुक जाती हैं !

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25 MAR 2022 AT 15:39

जब किसी मानुष को दुःख ढांप ले ,
मैं चाहती हूँ दुःख के नीचे दबे होने चाहिए
तुम्हारे तथाकथित संस्कार।
ताकि मनुष्यता ऊपरी सतह पर
खुलकर सांस ले सके।


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24 MAR 2022 AT 21:25

चाहत औऱ नियति।
ज़िन्दगी ,मैं और नियती चाय पर आये हैं। पहली बार ज़िंदगी ने ही मेरी मुलाकात नियती से कराई थी।
अब हम तीनों अच्छे दोस्त हैं। टेबल पर बैठे अपने हाथों में चाय का कुल्हड़ थामे किसी सोच में गुम मैं बातें करती नियती और ज़िन्दगी के चहरो को बड़े गौर से देख रहा था। लेक़िन वो दोनों आपस में क्या बात कर रही थीं मुझे समझने कोई दिलचस्पी नहीं थी। कि तभी चाहत का फ़ोन बजता हैं। और मैं कुछ कह पाता इससे पहले ही चाहत किसी बात पर अपनी नाराजगी जाहिर कर फ़ोन रख देती हैं। चाहत मेरी गर्लफ्रैंड हैं और चाहत और मैं काफी समय से इस रिशतें में हैं।
मैं अपने होठों से उठी बातों को पूरी करने के लिए फिर से चाहत को फ़ोन लगाता हूँ लेकिन वह नही उठाती।
मैं नियती और ज़िन्दगी को बातें करता छोड़ टेबल से उठ कुछ दूर जाकर खड़ा हो जाता हूँ। मैं व्यस्त , उलझा अपना वक़्त अपना प्यार अपनी हर कोशिश के साथ खुद को समर्पित कर फोन में अपनी नज़रे गड़ाएं खड़ा ही था के तभी नियति पीछे से चलकर आती हैं और हिचकिचाते हुए अपना गला खरास मुझे अपनी और पलटने का इशारा करती हैं। मैं चाहत में इस कदर बेचैनी से उलझा था कि मानो मुझे एक पल का वक़्त नही हैं।

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