आजकल के कोरियर वाले ज़माने में वो प्यार भरे ख़त वाला डाकिया कहीं खो सा गया। साइकिल की घंटी के साथ कंधे पर टंगे झोले में गम और ख़ुशी के पन्नों को संजोये चला आता था खाकी लिबास में वो, कभी इस घर तो कभी उस घर। कभी इस गली तो कभी उस गली। जाने कितनों के अनमोल एहसासों का उसने आदान-प्रदान किया, कितनों के प्रेम प्रसगों को उसने परवान चढ़ाने में खुद के वक़्त और पसीने का बलिदान दिया। और कुछ के ग़मों को कम शब्दों में उकेर कर उनके अपनों के हाथों में थमाया।
कितना महत्वपूर्ण किरदार निभाता आया है ये डाकिया हम सबके जीवन में, तो फिर क्यों हमने आज वर्तमान की ज़िन्दगी की फिल्म में इसके रोल पर कैंची चला दी और कोरियर, ऑनलाइन गिफ्ट्स और मोबाइल मैसेज को “ज़िन्दगी 2.0” में खुद से ज्यादा अहमियत वाले किरदार के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया।
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