Shruti Shrivastava   (श्रुति श्रीवास्तव)
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Joined 30 September 2020


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Joined 30 September 2020
3 MAY AT 12:05

तुमने तो वक़्त को भी पीछे छोड़ दिया ग़ालिब,
पल पल.. हर पल.. बदलते ही रहते हो..

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25 APR AT 14:34

आपने तो शहरों की दुरी में भी कभी अधूरी नहीं छोड़ी दोस्ती। और कई लोग तो एग्जाम दिए बिना ही न्यू कोर्स ज्वाइन करने लगे।

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25 APR AT 2:15

ना तुमने पहल की, ना हम दोनों से जुड़े लोगों ने वक़्त रहते ही तेरे गुरूर को शांत कर तुझे पहल करना सिखाया..क्योंकि वो भी मशरूफियत में चूर थे..इतने दिनों के इंतज़ार के बाद अब मुझे यकीन हो गया कि इतने सालों से रिश्ता जो बचा हुआ है वो मेरे लिए ही बस कीमती है..इसलिए मैं ही पहल करती थी रिश्ते को जोड़े रखने के लिए..तेरी ज़िन्दगी में मैं रहूँ न रहूँ..तुझे फ़र्क नहीं पड़ता..

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19 APR AT 1:51

मौन हूँ..क्योंकि मुझे पता है कि मैं कौन हूँ !

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17 APR AT 0:43

आप सहते रहेंगे तो लोग कुछ न कुछ बेतुका कहते रहेंगे। उनके मुंह सिलना है और अपने सुकून से मिलना है तो शातिर शब्दों के बाणों की प्रतिक्रिया आप भी दें।

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17 APR AT 0:37

आजकल के कोरियर वाले ज़माने में वो प्यार भरे ख़त वाला डाकिया कहीं खो सा गया। साइकिल की घंटी के साथ कंधे पर टंगे झोले में गम और ख़ुशी के पन्नों को संजोये चला आता था खाकी लिबास में वो, कभी इस घर तो कभी उस घर। कभी इस गली तो कभी उस गली। जाने कितनों के अनमोल एहसासों का उसने आदान-प्रदान किया, कितनों के प्रेम प्रसगों को उसने परवान चढ़ाने में खुद के वक़्त और पसीने का बलिदान दिया। और कुछ के ग़मों को कम शब्दों में उकेर कर उनके अपनों के हाथों में थमाया।
कितना महत्वपूर्ण किरदार निभाता आया है ये डाकिया हम सबके जीवन में, तो फिर क्यों हमने आज वर्तमान की ज़िन्दगी की फिल्म में इसके रोल पर कैंची चला दी और कोरियर, ऑनलाइन गिफ्ट्स और मोबाइल मैसेज को “ज़िन्दगी 2.0” में खुद से ज्यादा अहमियत वाले किरदार के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया।

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11 APR AT 23:55

सोलो कॉल की जगह जब वो आपको ग्रुप कॉल में शिफ्ट कर दे, तो समझ लें कि अब आपकी अहमियत क्या रह गयी है। तो समय रहते आप भी उस बदलाव में बह जाएं तभी मन शांत हो पायेगा, नहीं तो आंतरिक शांति भंग होती रहेगी, क्योंकि ये ग्रुप कॉल्स की प्रक्रिया जब निरंतर चलती रहेगी।

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11 APR AT 1:57

इतनी भरी हुई थी दिल से कि एक आंसू की बूंद ने ही ओवरफ्लो कर दिया..

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13 MAR AT 1:01

जब तक हर चीज़ में हाँ करते रहोगे तो अच्छे हो, जो भूले से भी मुंह से ना निकाल दिया किसी चीज़ के लिए तो अच्छी नज़रें भी बुरी नज़रों से देखने लगती हैं।

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13 MAR AT 0:58

आपने तो शहरों की दुरी में भी कभी अधूरी नहीं छोड़ी दोस्ती। और कई लोग तो एग्जाम दिए बिना ही न्यू कोर्स ज्वाइन करने लगे।

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