मन ही मन में सोचे मन
कैसे उल्टी राह चल दे?
अपनी बहकी बांतों में
मुझको ये गुमराह कर दे।
(पूर्ण कविता कैप्शन में...)-
Welcome to the world of fantasies!
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आँखो से आंका है सबने
किन्तु मन में झांका किसने?
दो क्षण को वह रुके थे राही
फिर नज़रो को फेरा सबने।
दो क्षण का हंसना रोना था,
जीवन भर कोई कहां रुकेगा?
साधारण को कौन चुनेगा?
(Full poem in the caption)-
Never trust the person you trust the most,
Because that person will hurt the most.
-
नयन ये कब तक राह निहारे
बाट किसिका का क्यो न हारे?
शोक मनाए, नीर बहाए,
क्षण क्षण काली मेघ हो जाए।
सबर न टूटे, बाट न छूटे
मन ही मन फिर पछताए।
चौखट पर कबसे टिकी है
एक टक, न पलक झपकाए।
लौट आ राही घर को अपने
सारे जगत सबेर हुई है।
ताकती है ये आंखे तुझको
बस तेरे घर अंधेर हुई हैं।-
बारिशों की कसक कहाँ?
फूलों में महक कहाँ?
आईना है बेखबर,
रूप का ये अक्स कहाँ?
मंजिलों को छूने वाली
रेंगती सड़क कहाँ?
सांझ हो चुकी है अब
भोर का सबब कहाँ?
ख्वाब क्या है, क्या पता?
ख्वाब भी बचे कहाँ!
जिंदगी है बेखबर,
ऐ जिंदगी तू है कहाँ?-
इतने नायाब जोड़ियां बना कर,
तू उन्हें मुक्कमल क्यों नहीं करता
ए खुदा, तेरे लिए इश्क क्या है?
मिलन की आस लिए जीते रहना
या विरह के ग़म में पल पल मरना
तू बता, इश्क का अक्स क्या है?-
इमारते जवान है खंडरों की तरह
बदुआए लगती है मन्नतों की तरह
राहों का पता क्या, बातों का पता क्या?
मेरी बातें लगती है मिन्नतों की तरह!-
बेमान बड़ा ये इश्क जनाब
सोच समझ कर कीजेगा।
सूली पर टांग के बुद्धि को
दिल को राह न दिजेगा।
क्यों तुले है होश गवाने पर?
कुछ न होगा पछताने पर!
हां, अगर तड़प की कसक लगी
तो इश्क दोबारा कीजेगा।
(अनुशीर्षक में पढ़े)-