Shrsti Tiwari   (सृष्टि)
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#सृष्टि हूँ सृजन ही मेरी सार्थकता है...
Joined 20 October 2017


#सृष्टि हूँ सृजन ही मेरी सार्थकता है...
Joined 20 October 2017
1 JAN 2023 AT 12:26

तुम लाना मौसम खुशी-हंसी बरसातों के
कुछ भीगी सुलगी रातों के

ख्वाहिशों के पर लाना
और उड़ने की परवाज़ भी
उसकी उंगलियों की सिरहन लाना
उसका मुझे देखने का अंदाज़ भी

देना वो सब कुछ
जो हासिल करने से ज़्यादा कहीं ज़रूरी है
नए साल यूं आना कि कोई ना कहे
हाय ये साध अब तक अधूरी है।

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17 MAR 2022 AT 1:05

हम फ़लक पे सितारे से टके हैं

एक ही दुनिया में
एक ही आसमाँ के नीचे
एक ही तरह से चमकते हुए

जैसे बहुत चलने के बाद भी दुनिया को नापा नहीं जा सकता
जैसे बहुत चाहकर भी आसमाँ को ढांपा नहीं जा सकता
जैसे

जैसे बहुत मद्धम पड़ गए तारों की चमक को जांचा नहीं जा सकता

ठीक ऐसे ही है हमारा सब्र

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12 FEB 2022 AT 23:41

जैसे गुलाबी धूप की सुबह
जैसे मखमली शाम का डेरा
तुम्हारी बाहों का घेरा...


जैसे रात की कोई भूल-बिसरी बात
जैसे मिल जाये कोई अनछुए लम्हात
तुम्हारी बाहों का घेरा...

जैसे छुअन हो तुम्हारी साँसों की
जैसे बेफिक्री हो एहसासों की
तुम्हारी बाहों का घेरा...

जैसे किसी कैद परिंदे को मिल जाएं पंख
जैसे उतरते हैं तितली की छुअन से कलियों पे रंग
तुम्हारी बाहों का घेरा...

तुम्हारी बाहों का घेरा
हर तरफ है, तुम चाहे जिधर हो
मेरी मंज़िल कहीं हो
तुम मेरा सफर हो
तुम्हारी बाहों का घेरा...

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7 FEB 2022 AT 14:08

प्रेम में गुलाब दो ना दो
मगर प्रेम में गंध ज़रूर देना

क्योंकि
सूख जाते हैं गुलाब
टहनियों पर, गुलदानों में
और किसी भूली-बिसरी किताब में भी

लाख कोशिशों के बाद भी
सूखी पंखुड़ियों में महक नहीं लौटती

और प्रेम की गंध
देह में उठ जाती है
हवाओं की छुअन भर से

गंध! जो कहीं किसी इत्र की शीशी में नहीं होती
मगर महकती रहती है उम्र भर

इसलिए गुलाब दो ना दो
प्रेम में गंध ज़रूर देना

Rose day🌹

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5 FEB 2022 AT 14:24

बसंत हर बसंत आया है
मौसमों ने फिर क्यों पतझर पाया है?

दरख्तों पे अजब सी खुमारी है
परिंदे जानते हैं अब उनके घरों की बारी है

ये जो हवाओं पे संगीत बुना है
ज़र्द पत्तों की खामोशी ने ही इन्हें गुना है

बदल गई है रूत
हवाएं सिरहन नहीं, हूक ला रही हैं

नए मौसमों की आहट को
विरह बता रहीं हैं

तो क्या इंतज़ार को डरना होगा
सुनो! बसंत तुम्हें शाखों को फिर भरना होगा

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6 APR 2020 AT 2:54

मैं छोड़ देना चाहती हूँ
चेहरे पढ़ने का हुनर

अब चेहरों पे लिखी स्याहियों से
मुझे डर लगने लगा है।

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30 NOV 2019 AT 23:11

मैं हजारों शब्द लिखकर मिटा चुकी हूँ
अपनी व्यथा से खुद आप ही उकता चुकी हूँ।

ख्यालों के बबंडर से कितना भी गुज़र लूँ
मैं पीड़ा की परिधि तक पहुंचकर ही घबरा चुकी हूँ।

खुले आसमाँ के नीचे भी घुट रही हूँ
उफ्फ्फ कितनी जलन है,
मैं फिर एक बार,किस रूप में जलाई जा चुकी हूँ।

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12 NOV 2017 AT 4:25

नींन्द भरी पलकों से जागे तो जाना प्यास बड़े जोरों कि थी..
सवाल फिर अटका प्यास???
जाने उस शख्स की थी या पानी की...


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7 DEC 2021 AT 1:03

वक्त के हों कांटे
हों लम्हों के सिरे

उम्र के छोर हों
हों ख्वाहिशों के बोझ सिरफ़िरे

तुम मेरे रहोगे
मैं रहूँगी तुम्हारी हर एक ओर से

तुमने,देखा तो होगा?
दिन को मिलते, शाम के शोर से?

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26 OCT 2021 AT 0:56

बेक़रारी को कब क़रार आया है?
बहुत चले तो समझ आया

दरिया पास ही था
दूरतक तो प्यास ने चलाया है।

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