हम-तुम
दोस्त बने
ख़्याल रखा एक दूसरे का
खूब रोये
सब कुछ बताया एक दूसरे से
शिद्द्त से ये रिश्ता निभाया
महसूस किया एक दूसरे को
दुनिया भर की बक़वास की
हर एक ख़्वाहिश बताई
दिन भर थकने के बाद
सुकून के लिए एक दूसरे का साथ ढूढ़ते
फ़ोन पर limitless बातें करते
11 बजे का समय हमारा होता
कही से दिल तुड़वा के आने पर
एक दूसरे की गालियां खाते
फिर हँसते, कसमें खाते
की फिर ये सब नही दोहराएंगे
फिर ज़िन्दगी ने करवट ली
हालात बदले
हमारा वक्त बदल गया
और हम भी बदल गये
रोज़ की बातें, महिनों में होने लगीं
महीनों की सालों में,
और सालों की दसकों में
बस एक चीज़ नही बदली,
और वो था हमारा comfort
हम अब भी वही थे
बस अब mature हो गए थे
और फिर आज 16 साल बाद
फिर से ज़िन्दगी हमें वही ले गयीं
जहां से हमारी दोस्ती की शुरुआत हुई आज पता लगा कि कितने इनोसेंट थे हम कहाँ दुसरों में खुद को ढूंढ रहे थे, आज पता लगा कि असल में हम अपने इश्क़ से अपनी दोस्ती बचा रहे थे। हमनें मोहब्बत से ऊपर दोस्ती चुना और ये हमारा सुकून है।-
रूहानियत का ख़्याल ही तब्दीली लाएगा
जब ज़र्... read more
कुछ ख़्वाब तुम्हारे
बंद दरवाजों के
कोनों में लगे जाले
में लटके पड़े हैं।
कुछ यादें तुम्हारी
पुराने बक्से के
पुराने कपड़ों में
लगी सिलवटों में
मुड़ी पड़ी हैं।
कुछ ख़्वाहिशें तुम्हारी
बिस्तर पर पड़े
तकिये के गिलाफ़
में दबी पड़ी हैं।
कुछ हसरतें तुम्हारी
एक पतंग सी
उस नीम के पेड़
पर अटकी पड़ी हैं।
एक मोहब्बत भी है
जो कब से दरवाजे पर
दस्तक दे रही है
एक मेरा दिल भी है
जो अब धड़कना
भूल गया है।-
ख़बर शाम की लेने चांद निकल पड़े जब से,
शाम ने चांद से समझौता कर लिया तब से।
चांदनी तारों संग ठिठोली कर रही जब से,
इश्क़ ने रंगों से आसमां रंग डाला है तब से।
सुर्ख गालों पर अश्कों के छाप बन गए जब से,
हँसी होठों पर आकर एकदम ठहर गयी तब से।
ख़्वाब में मेरा मिलना जब हुआ था उनसे,
हकीकत रूबरू होने से डरने लगी तब से।
चाहतें दिल में संभाले रखा था जब से,
लफ्ज़ बगैर इजाज़त बहने लगे हैं तब से।
पहली गफ़लत भी आख़िरी बन गयी जब से,
मोहब्बत रूठ कर मुझसे कहीं चली गयी तब से।।-
मेरे आँचल का आख़िरी छोर बन कल वो उंगलियों में लिपटना चाहते थे
मेरे चेहरे की आधी मुस्कुराहट कल वो पूरा करना चाहते थे
मेरे परियों की कहानी में कल वो लाल कुर्ते में आना चाहते थे।
मेरे बेरंग बदरंग दुनिया में कल वो रंग बिखेरना चाहते थे।
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तुम्हारी आदतें उसकी याद दिलाती हैं
काफी एक सी हरकतें भी हैं
वो भी बड़े ही तहज़ीब से वादें करता था
तुम भी बड़ी तसल्ली से कसमें देते हो
उससे राब्ता ख़्वाहिश लगती थी
तुम्हें सुनना सुकून लगता है
शिकायतों का ज़िक्र वहां भी नही हुआ
नाराज़गी कभी यहाँ भी नही दिखी
वहां पैर आसमां में थे
यहां जमीं अपनी लगती है
वहां सुबह मुस्कुराती थी
यहां शाम गले लगाती है
तब आफ़ताब से नज़रें मिलाते थे
अब मेहताब पर नज़रें जमाते हैं
ज़िन्दगी ख़्वाब सी गुजर रही है,
मोहब्बत फिर सिरहाने खड़ा है
दरवाज़े पर दस्तक तेज हो रही है
पर अब फिर से उठना लाज़िम नही।-
आगाज़-ए-उल्फ़त, नवाज़िशें, सलामती
गर हुये गिरफ्तार फिर नही है ज़मानती ।-
मुझे यकीन था कि
साल दर साल बीतने पर,
उसकी याद मिट जायेगी,
उसकी शक्ल भूल जायेगी,
उसकी ख़्वाहिश दब जायेगी।
मगर ये नही पता था कि
वक़्त मुझे ऐसे मोड़ पर खड़ा कर देगा
जहां वो टूटा दिखेगा और
मैं उसे जोड़ भी न पाऊंगी।-
नाराज़गी तुम पर जंचती नही है
अना की मोहब्बत में चलती नही है
क्यूं बैठे हो चिलमन में रुआंसे हुये से
लौट आओ अब धड़कन संभलती नही है।-