Shrinkhala Pandey  
104 Followers · 81 Following

Joined 7 May 2017


Joined 7 May 2017
25 MAY 2021 AT 22:36

जिन्होंने जल्दीबाजी में
पहन लिए पैर में उल्टी चप्पल
उन्होंने कहा -
"प्रेम ज़्यादा दूर तक
चलने नहीं देता।"

-


8 SEP 2020 AT 19:28

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया ...

©साहिर लुधियानवी

-


18 SEP 2021 AT 23:24

गहरी अंधेरी रात, हल्की- हल्की हवा में हिलते डुलते पत्ते, घास पर धीरे धीरे जमा हो रही ओस, जख़्मी कुत्ते के कराहने की आवाज़, गर्मी और सर्दी के बीच का कोई मौसम, और थोड़ी बहुत और आवाजें इस सब के बीच, मुझे उन सारी जगहों पर फिर से वापस जाना है जहाँ मेरी यादों के कुछ कतरे छूट गए है। मैं उन सब से कितती दूर हो गई हूँ जो मेरे सबसे करीब थे। और जो कभी अपने नहीं थे उनके इतना करीब। उन जगहों से, उन रिश्तों से, उन छोटी- छोटी यादों से दूर होना, भागते भागते यह सब कभी जेहन में नहीं आता। अभी रुकी तो महसूस हुआ और जान पाई कि जिन्हें पाने में सब छोड़ दिया उन्हें मेरे होने ना होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता। जिन्हें मैं अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना चुकी हूँ उनके लिए मैं सिर्फ फुरसत में निकाला गया समय हूँ। कोई मिले कभी ऐसा जो व्यस्तता में याद करे तो बात बने शायद। या शायद तब भी नहीं। प्यार की तलाश, उसका मिल जाना, फिर उसके साथ होना, फिर तमाम शिकायतें, उम्मीदें, शंकाए, अनिश्चितता, और अलगाव। इसके बाद भी अगर हम खुद को बचा के ले जाएं तो समझना कि हासिल हुआ है।

-


9 AUG 2020 AT 19:12

मेरे ऊपर का बोझ मुझे गर्त में दबाता जा रहा है
रातें बेचैन हो चुकी हैं, सपने डराने लगे हैं
कर्ज बढ़ते ही जा रहे हैं, उन्हें चुकाने से पहले मैं मरना चाहती हूं
पछतावा, दुःख, अकेलेपन ने मिलकर मेरे अंदर की ऊर्जा को हरा दिया है
मेरे हाथ से सबकुछ धीरे- धीरे रेत की तरह फिसलता जा रहा है
मैं हारती जा रही हूँ
घर, सफर, भरोसे के बाद
देखते ही देखते कई रिश्ते भी हार चुकी हूं।

'श्रृंखला'



-


26 JUL 2020 AT 1:59

गाँव की कुछ लड़कियां मां बन गईं
जब उन्हें खुद मां की जरूरत थी 
गाँव के कुछ बाप 
दोबारा पति बने जब उन्हें 
अपने बिन मां के बच्चों की परवरिश करनी थी।।

-


18 JUL 2020 AT 22:37

कल रात एक ट्रेन का सपना देखा
हरा सिग्नल मिलते ही ट्रेन अतीत के किसी स्टेशन से छूटती है
और धीरे- धीरे रफ्तार पकड़ लेती है 
चली जाती है समय की किसी अज्ञात दिशा में
मैं बैठी हूँ इस ट्रेन पर बिना टिकट के यात्री की तरह
एक सीट के कोने में चुपचाप
मैं नहीं जानती कि मेरा अंतिम पड़ाव क्या है।।


-


12 APR 2020 AT 0:23

कितना असीम है ये नभ और धैर्यशाली है धरा
अनियंत्रित हैं नदियां और स्थिर हैं पाषाण
कितनी अचंभित हैं सभी की आंखें और अंतहीन हैं प्रतिक्षाएं
मैं इनके बीच निश्चेष्ट बैठी अपलक निहार रहीं हूँ एक पुरानी तस्वीर
और सोच रही हूँ ये देश आखिर दोबारा कब आजाद होगा।

-


10 NOV 2019 AT 17:14

मुद्दतों बाद एक दिन हम एक मोड़ पर टकरा गए
उसने कहा, अरे तुम, कितना बदल गई हो
मैं हल्के से मुस्कुराई और पूछा सच?
उस रात घर लौटकर मैंने गौर से देखा खुद को
करीबन आधे घंटे तक
हां वाकई बदल गई हूं मैं
पहले स्थिर थी, सिर्फ तुम्हारे प्रेम में अटकी हुई
कुछ और करने और सोचने का समय ही कहाँ था
लेकिन अब देखो
चल रही हूँ, दौड़ रही हूँ, भाग रही हूँ
तमाम जिम्मेदारियों को निभाने के लिए
इज़्ज़त, मर्यादा कितना कुछ तो है
इस गृहस्थी के साथ सम्भालने को
फिर कहाँ याद आते हो अब तुम
और हां
तुम्हारे दिए प्रेमपत्र भी पिछले बरस जला दिए
डर से कि कहीं कोई और न पढ़ ले
वाकई बदल गई हूँ 
करती भी क्या 
परिवर्तन शाश्वत है
और इसे एक न एक दिन तो स्वीकारना ही था।।


-


4 NOV 2019 AT 18:31

मुश्किल होता है लौटना
शहरों से गाँवों की ओर,
मुश्किल होता होगा
श्मशान से लौटना
मगर आसान नहीं होता है
रेलवे स्टेशन पर किसी को
पहुँचाकर लौटना,
दुनिया से भागा हुआ प्रेम
आ सकता है लौटकर
मगर बेहद मुश्किल होता है
प्रेम में घर से भागी लड़कियों का लौटना।

-


27 AUG 2019 AT 22:20


सोचती हूँ एक खत लिखूँ तुम्हें
उनमें करूँ जिक्र तमाम उन बातों का
जो कभी फ़ोन पर न कह सकी
सारी शिकायतों को लिखूँगी लाल स्याही से
और खूबियों को कर दूंगी नीला
इस खत में मिलन के गीत होंगे और
होंगी तुमसे दूर रहने की ढेर सारी उदासियां
अच्छाईयों के साथ-साथ तमाम बुराइयां भी लिखीं होंगी
और लिखते लिखते जब सारी बातें खत्म हो जाएंगी
तो इसे एक गुलाबी लिफाफे में लपेटकर
काजल से थोड़ा टीक दूंगी
और पोस्ट करने के बजाय रख दूंगी
तुम्हारी उस किताब के पन्नों के बीच
जिसे खत्म करने की जल्दी में
तुम आजकल मुझे भूल गए हो....

-


Fetching Shrinkhala Pandey Quotes