Shrikant R. K Panday   (लfज़ों से परे...)
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Joined 7 April 2018


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Joined 7 April 2018
18 FEB 2020 AT 14:03

चल रही है हवा रूठने मनाने की।
किरदारों के बनकर टूट जाने की।।
हो रही है कोशिशें मिटने मिटाने की।
हर लम्हा जियूं या अंदर ही डूब जाने की।

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6 MAY 2018 AT 10:57

मैंनें लाख कोशिशें की, पर टूटने न दिया ।

वो मेरे अपने थे, इसलिए रूठनें न दिया ।।

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9 JAN 2022 AT 14:15

थोड़ी कड़वाहट की ज़रूरी है मिज़ाज को मेरे।
बहुत सी आहुतियाँ दे चुका हूँ किरदार में मेरे।।

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1 JAN 2022 AT 10:33

मेरी चाहत का अजब ये सिला देता है वो ।
पूछता हूँ पता उससे, बातें बना देता है वो।।

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25 DEC 2021 AT 16:14

थक गया हूँ चलते चलते पर टूटने नहीं देती।
कुछ ज़िम्मेदारियाँ मुझे कभी रूठने नहीं देती।।

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13 DEC 2021 AT 0:18

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6 DEC 2021 AT 20:36

बदल कर देखना कभी
किरदार अपनी कहानी में।
तुम्हें हर किरदार की अपनी
अहमियत पता चलेगी।।

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3 DEC 2021 AT 18:49

अगर शांत हैं तो बना रहने दो,
पत्थर जब मौन त्यागते हैं।
ज्वालामुखी बनकर फूटते हैं
या सुनामी बनकर उखड़ते हैं।।

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12 NOV 2021 AT 16:39

पांव में पाजेब भी पहन लिया करो तुम,
तुम्हारे कानों में बाली बहुत जचती है वो।

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12 NOV 2021 AT 16:18

बहुत रफ़्तार में चल रहीं धड़कने इस शहर की।
यहाँ हर दो क़दम पर यादों का इक गांव मिलता है।

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