श्रीमान Deव साहब   (Deव "امر")
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Joined 29 October 2017


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Joined 29 October 2017

वो जो जानते नहीं किया करते है,
जो जानते है वो अनदेखा करते है,
दोनों में ही बेकार है नफ़रत!

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क्या लिखें?
दिल के ऊपर!!
बस ये दिल ही तो है!
और कुछ भी तो नहीं!

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तुम्हारा था तुम्हारा रहूंगा,
तुम्हारे परवाज़ चढ़ने में
मैं बस गवाह हूँ,
उस दिन तक
जब तक कोई झोंका उखाड़ न फेंके!

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फुल तो लाया था, तुम्हें देने की ख़ातिर,
पर आज फ़िर न दे पाया,
तुमने जो पकड़ा हाथ गैर का
मैं फूलों का ढेर कर आया!

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सांसों को रोकने वाली सांसें मिलना नामुमकिन है,
फ़िर भी अगर रुक गई सांसें कभी
तो उन सांसों को सांसें देने वाला भी नममुमकिन,
ये खेल सारा सांसों तलक फ़िर बस वीराना!

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શબ્દો સુધી જ નહોતો હું,
પણ તેં તારી ક્ષમતા અનુસાર જ મને ચાખ્યો,
હું અગાઢ અને અમાપ હતો અને છું,
પણ તારે એનાથી શું?

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जब भी तुम्हे सोचा तो चाँद बहुत दूर था,
जब भी तुम पास थे, चाँद कहाँ जरुरी था?

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वफ़ा तब ही याद आती है,
जब कोई बेवफ़ा मिल जाती है!

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जब अपनों को समझाना हो,
हर कोई चुप हो जाता है,
वो बोल नहीं पाता
न जाने क्या होता है,
खुद ही समझने लगता है,
और ये गलत होकर भी
उसे लगता है कि
यह बेहतरीन है!

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अर्थघटन किसी घटना के आधार पर होता है,
और उस अर्थ का उस घटना से सीधा संबंध होता है,
पर हम उसे अर्थपूर्ण मानते है,
जब की अर्थपूर्णता बस हृदय में होती है,
जिसका अर्थ वो ही जाने!

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